स्वतंत्रता के मायने: एक भारतीय को चाहिए ‘आजादी’ इन 8 तरह के लोगों से…

आजादी का मतलब हर व्यक्ति के लिए अलग होता है। आज के संदर्भ में यह शब्द अपने आप में एक अलग स्तर की व्यापकता लिए चलता है। वामपंथी गैंग के लिए इसके मायने बिलकुल ही अलग हैं, और गैर-वामपंथियों के लिए अलग। ‘हिन्दुओं से आजादी’ भी इसी एक शब्द में समेट दी गई है, जो बार-बार, रूप बदल कर हमारे कानों तक पहुँचती है। साथ ही, ‘केरल माँगे आजादी’ जैसे संदर्भ भी इसी शब्द में सिमटे हुए हैं। इसे इतनी बार गलत तरीके से समझाने की कोशिशें हुई हैं कि लोग भूल जाते हैं कि पंद्रह अगस्त का दिन क्या है, और स्वतंत्रता दिवस के मायने क्या हैं।

यूँ तो भारतीय राष्ट्र को मिली आजादी एक ‘ट्रांसफर ऑफ पावर’ कही जाती है, क्योंकि यहाँ तमाम संघर्षों के बाद भी देश को बाँट कर एक ऐसी स्थिति बना दी गई जो स्मृति में नासूर की तरह रिसता रहा है। मैं भी, व्यक्तिगत तौर पर, कॉन्ग्रेस की अंग्रेजियत का प्रखर विरोधी रहा हूँ कि आजादी के बाद भी हमने औपनिवेशिक प्रतीकों को ध्वस्त करने की जगह उसी में गौरव क्यों महसूस किया? आजादी के बाद भी जॉर्ज पंचम की मूर्ति दिल्ली में, या क्वीन विक्टोरिया के नाम पर इमारत कोलकाता में क्यों है?

आखिर ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ को ध्वस्त क्यों नहीं किया गया? क्या संसद भवन जैसी इमारतों को डायनामाइट से उड़ा नहीं देना चाहिए था? क्या इनकी दीवारों से गुलामी की बदबू नहीं आती होगी कॉन्ग्रेस के नेताओं को? अंग्रेजों की छाप की हर वैसी चीज को मिटा देना था, जो हम आने वाले समय में बना सकते थे। सड़कें और रेल हमारे काम की हैं, इसलिए उनको रखते, लेकिन मूर्तियों, इमारतों और नामों को ढोने के पीछे ‘श्वेत चमड़ी’ के आकर्षण के अलावा क्या कारण रहे होंगे? क्या कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र अपने आपको गुलाम रखने वाली, हत्यारिन सरकारों की मूर्तियाँ ढोता है?

प्रकाशित तारीख : 2020-08-15 13:07:17

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