जिसकी कारगुजारियों से दुनिया परेशान हो, उसमें नेपाल की वर्तमान सत्ता को कमाल की काबिलियत दिखती है। जो देश दुनिया में अपने कुकृत्यों के लिए बदनाम हो, उसमें नेपाल की कम्युनिस्ट सत्ता को गजब का कौशल दिखता है। जो मुल्क विश्व में अपनी बदनीयती के लिए मशहूर हो, उसमें नेपाल की क्रांतिकारी सत्ता को आला दर्जे की ईमानदारी दिखती है। जो राष्ट्र ब्रम्हांड में अपनी अनैतिकता के लिए कुख्यात हो, उसमें नेपाल की ‘पारखी’ सत्ता को अव्वल दर्जे की नैतिकता दिखती है। लिहाजा, आज दुनिया बेसब्री से उस चश्मे को खोज रही है, जिससे नेपाल की ओली सरकार को न केवल चीन की कुटिल कुटनीति की खूबियां नजर आती हैं, बल्कि उसे धूर्त चीन दुनिया के लिए ‘प्रेरणा की नई पाठशाला’ भी लगता है। ओली सरकार यह तर्क देकर कि चीन ने आज उपलब्धियों के जो पहाड़ खड़े किए हैं और विकास के जो आयाम रचे हैं, उन पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए; अपनी चीनी चापलूसी पर तो पर्दा डाल सकती है पर दोनों की अवसरवादी हकीकतों को झुठला नहीं सकती।
चीन की तरफ बढ़ते झुकाव और आंतरिक राजनीति में चीनी दखल के बीच ओली सरकार का तर्क है, ‘वो अब सही रास्ते पर है और उसने गलती सुधार ली है। संतुलित और राष्ट्रीय हित के संबंधों के लिए वो भारत और चीन के साथ सहयोग व साझेदारी को जरूरी मानती है। वो किसी के रिश्ते को बढ़ावा या अनदेखा नहीं कर सकती। अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर दोनों के साथ सहयोग बढ़ाने व एकतरफा निर्भरता को खत्म करने की कोशिश कर रही है। उसने कनेक्टिविटी को `विविधता’ देने के मकसद से चीन के साथ परिवहन समझौते किए हैं, ताकि वो बहुआयामी कनेक्टिविटी का हिस्सा बन सके और उसके पास अधिक विकल्प हों। वो एकतरफा ढलान को सही कर रही है। नेपाल ने अब चीन को जो अहमयित दी है, वो वास्तव में उसे पहले से ही देनी चाहिए थी…’ नेपाल ने अपनी नई ‘झोली’ नीति की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति कर ली है।
अलबत्ता, यह नीति ओली सरकार के इस दूसरे कार्यकाल की दिमागी उपज नहीं है, असल में २०१६ के अपने पहले कार्यकाल में ही उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी थी। अपनी हिंदुस्थान यात्रा पर आने से पहले ही ओली ने चाइना कार्ड खेला था। अर्थात चीन से समान संबंध व एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में नेपाल में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई के लिए बातचीत आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। तब ओली के स्वदेश लौटने के बाद भी उनकी सरकार का रुख चीन के प्रति नरम और हिंदुस्थान के प्रति गरम वाला ही रहा था। नतीजे में राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की प्रस्तावित भारत यात्रा को रद्द कर दिया गया था और भारत स्थित नेपाली राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को यह कहकर वापस बुला लिया गया कि वे उनकी सरकार को अपदस्थ करने में हिंदुस्थान की मदद कर रहे थे।