भारत से नेपाल के रिश्ते अभी अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे। ‘रोटी-बेटी का संबंध’ वाले प्रिय भारतीय राजनयिक मुहावरे के बावजूद नेपाल की राजनीति में चीन की कुछ न कुछ भूमिका बहुत पहले से रहती आई है। लेकिन यह पहला मौका है जब नेपाल सरकार को एक सीमित अवधि में एकाधिक बार चीन के पक्ष में और भारत के खिलाफ स्टैंड लेते देखा जा रहा है। क्या यह महज तात्कालिक मामला है? कोई राजनेता अपना नफा-नुकसान ताड़कर खामखा ऐसी बातों को हवा दे रहा है? या फिर नेपाल के समूचे राजनीतिक माहौल में ही कोई स्थायी बदलाव आ चुका है, जिसे हम कूटनीति की अपनी पारंपरिक समझ के चलते देख नहीं पा रहे हैं?
खुराफाती रवैया
ऊपरी तौर पर एक नेता का खुराफाती रवैया ही इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार लगता है। नेपाली प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली जब 2016 में कुछ महीनों के लिए यह पद संभाल रहे थे तब उन्होंने चीन के साथ ट्रांजिट ट्रेड ट्रीटी की थी, अभी अपने देश का विवादित नक्शा पास करा लिया है, जिसमें भारत-चीन सीमा के करीब, रणनीतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण कुछ जगहों को नेपाल में दिखाया गया है। वैसे तो इस नक्शे पर नेपाल में आम सहमति बनी हुई है, लेकिन बाकी राजनीतिक दलों और राजनेताओं को तो छोड़िए, ओली की अपनी पार्टी, नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी में भी शीर्ष स्तर पर यह राय जाहिर हो रही है कि भारत के प्रति नेपाली प्रधानमंत्री का रूखापन ‘राजनीतिक रूप से गलत और कूटनीतिक दृष्टि से अनुचित’ है।