इस लेख-शृंखला की शुरुआत में ही हमने कुछ किरदारों की तुलना नब्बे के दशक की बॉलीवुड फिल्म ‘खलनायक’ से की थी। कल उसी दौर की फिल्म ‘सौदागर’ का भी उल्लेख आया था और आज फिर से संदर्भ निकला है तो ‘खलनायक’ का ही। असल में फिल्म ‘खलनायक’ के ‘टाइटल’ और ‘टाइटल सांग’ के अलावा एक ‘आइटम सांग’ ने भी उस दौर में काफी धूम मचाई थी। बोल थे, ‘चोली के पीछे क्या है…’। माधुरी दीक्षित और संजय दत्त पर फिल्माया गया आनंद बख्शी का ही लिखा था वह मशहूर गीत। आज तकरीबन २८ साल बाद उस आइटम ‘सांग’ के बोल और किरदार दोनों थोड़े से बदल गए हैं, अब गीत के नए बोल हैं, ‘ओली के पीछे क्या है…’? जबकि किरदार हैं, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली और चीन की राजदूत होउ यांग्की।
पूरी दुनिया के लिए इस वक्त कोरोना महामारी के अलावा चिंता का कोई विषय है तो वो है दक्षिण एशिया में बनी तनाव की स्थिति। जहां एक ओर हिंदुस्थान और चीन एलएसी पर आमने-सामने हैं, तो वहीं दूसरी ओर नेपाल भी हिंदुस्थान के साथ लगातार तनाव बढ़ा रहा है। पहले नक्शे में बदलाव, फिर नागरिकता कानून में संशोधन और उसके बाद तरह-तरह की तमाम आपत्तियां। अब तो नेपाल बाकायदा डिप्लोमेटिक नोट भेजकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने लगा है। आपत्तियां, तर्क और तुक्के भी ऐसे कि जिन्हें सुनकर हंसी छूट जाए। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली तुक्का मारते हैं कि भगवान श्रीराम का जन्म नेपाल में हुआ था तो उनकी सरकार तर्क देती है कि सीमापार हिंदुस्थान द्वारा सड़क-बांध निर्माण से नेपाल के हिस्सों में बाढ़ आती है। जबकि सच्चाई में न तो श्रीराम का जन्म नेपाल में हुआ था, न ही हमारी सड़कों और बांध से नेपाल डूबता है। असलियत तो ये है कि नेपाल की गंडक और कोसी नदियां ही हर साल बिहार को डुबोती हैं। फिर भी नेपाल है कि हिंदुस्थान को ही कोस रहा है। क्यों? तो इसका एकमात्र कारण है नेपाल के नए-नवेले प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली का चीन के प्रति ‘टिकाऊ’ प्रेम।
के.पी. शर्मा ओली गणतांत्रिक नेपाल के ११वें (वैसे ४१वें) प्रधानमंत्री हैं। वे नेपाल की सत्ताधारी पार्टी एनसीपी (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी) के अध्यक्ष भी हैं। नेपाल में उनका प्रधानमंत्री होना या एनसीपी का अध्यक्ष होना, कोई खास बात नहीं है, बल्कि खास बात यह है कि वे नेपाल के राजनीतिक इतिहास में अब तक सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। कितना लंबा है यह रिकॉर्ड? तो आपको जानकर शायद आश्चर्य होगा कि यह लंबा वाला रिकॉर्ड है महज २९ महीनों का। इसमें उनके पहले कार्यकाल के ११ महीने जोड़ दें तो ये हो जाता है कुल ४० महीने। खैर, इस लंबे से रिकॉर्ड को बनाने में जिस पार्टी का सबसे अहम रोल है वह आश्चर्यजनक ढंग से नेपाल की सत्ताधारी, सत्ता समर्थक या कोई विपक्षी पार्टी नहीं है, बल्कि नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा के इस रिकॉर्ड तोड़ कार्यकाल के पीछे सबसे बड़ा योगदान है तो वह है चीन की सरकारी पार्टी यानी चायना कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीपी) का और नेपाल में विशेषाधिकार प्राप्त चीन की राजदूत होउ यांग्की का