बीते 20 जुलाई को राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसानों ने सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए तीन कृषि अध्यादेशों के विरोध में ट्रैक्टर-ट्रॉली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया. वहीं अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने इन अध्यादेशों के खिलाफ नौ अगस्त को देशव्यापी आंदोलन की घोषणा की है.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर मोदी सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अव्वल तो मौजूदा समय में किसानों को तथाकथित ‘ऐतिहासिक सुधार’ के बजाय अल्पकालिक तत्काल मदद की जरूरत थी, जिसके जरिये वे कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुए भयावह संकट से उबर पाते.
इन अध्यादेशों का समर्थन करने वाले विशेषज्ञों का भी मानना है कि अभी ऐसी कोई जल्दबाजी नहीं थी कि संसद का इंतजार किए बिना इसे आनन-फानन में अध्यादेश के जरिये पारित किया जाए.
बहरहाल, आइए पहले ये जानते हैं कि ये तीनों अध्यादेश क्या-क्या हैं?
पिछले महीने तीन जून को केंद्रीय कैबिनेट ने किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने के लिए और मार्केटिंग व्यवस्था में परिवर्तन करते हुए तीन अध्यादेश पारित किया था. सरकार इसे ‘एक राष्ट्र, एक कृषि बाजार’ बनाने की ओर बढ़ते कदम के रूप में पेश कर रही है.
पहला, मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया. इसका मतलब है कि अब व्यापारी असीमित मात्रा में अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल प्याज और आलू को इकट्ठा करके रख सकते हैं.
दूसरा, सरकार ने एक नया कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 पेश किया है, जिसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.