मैं उन प्रवासी भारतीयों में से एक हूं जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने बहुप्रचारित वंदे भारत मिशन के जरिए विदेशों से ‘बचा कर लाने’ का दावा किया है. लेकिन इस ‘बचाव’ मिशन का मेरा अनुभव मेरे जीवन के सबसे तनावपूर्ण समय में से एक रहा है. यह भावनात्मक और आर्थिक रूप से एक पीड़ादायक अनुभव था. अंत में, मुझे केरल में अपने घर तक वापसी के लिए वंदे भारत की उड़ान पर एक सीट पाने के लिए मोदी सरकार और एयर इंडिया के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी पड़ी. ये है मेरी कहानी.
मैं 2015 से ही यूरोप में रह कर काम कर रही थी, और 2018 से म्यूनिख में थी. इस साल के आरंभ में मुझे बेंगलुरु की एक आईटी कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव मिला और मैं भारत में स्थानांतरित होने के लिए पूरी तरह तैयार थी. मैंने अपने जर्मन नियोक्ता को अपना इस्तीफा सौंप दिया और 5 जून को जर्मनी से रवानगी के लिए मार्च में ही अपना टिकट बुक करा लिए. लेकिन इसके बाद, जर्मन और भारतीय दोनों ही सरकारों ने कोरोनावायरस संकट के कारण लॉकडाउन की घोषणा कर दी.
मेरा जर्मन वीज़ा, जिसे ईयू ब्लू कार्ड कहा जाता है, मेरे नियोक्ता से जुड़ा हुआ है. इसमें रोजगार अनुबंध समाप्त होने पर वीज़ा भी समाप्त हो जाता है. हालांकि, भारत की यात्रा पर पाबंदी को देखते हुए, जर्मनी की सरकार ने फंसे हुए विदेशियों के लिए जर्मनी में कानूनी तौर पर बिना किसी परेशानी के रहने का प्रावधान कर दिया था. लेकिन उसके बाद मुसीबत शुरू हो गई.