भारतीय राजनीति के ये नए किरदार हैं. ये हर शाम और रात और कभी-कभी दिन में भी सज-धज कर टीवी कैमरों या स्टूडियो में बैठ जाते (इनमें ज्यादातर पुरुष ही हैं) हैं और देश-दुनिया के तमाम विषयों पर चर्चा करते हैं. राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियों के ये नए पदाधिकारी हैं.
ऐसा नहीं है कि पार्टियों में पहले प्रवक्ता नहीं हुआ करते थे. हाल के दशक में उनकी संख्या में विस्फोट हुआ है और वे ज्यादा नजर आने लगे हैं. पहले पार्टियों में केंद्र और राज्य स्तर पर अक्सर एक प्रवक्ता हुआ करते थे. लेकिन निजी समाचार चैनलों के कुकुरमुत्ते की तरह उग आने के बाद हर चैनलों में बहस और चर्चा के लिए प्रवक्ताओं की जरूरत पड़ी और राजनीतिक दलों ने उस जरूरत को सहर्ष पूरा किया.
चैनलों ने राजनीतिक और कई बार आर्थिक और सामाजिक विषयों पर बहस के कार्यक्रम करने का चलन शुरू किया, जिसके लिए सत्ताधारी और उनका संतुलन बनाने के लिए विपक्षी दलों के प्रवक्ताओं को बुलाया जाने लगा. चूंकि देश में अब ज्यादातर घरों में टीवी है और समाचार चैनल भी देखे जाते हैं, इसलिए ओपिनियन मेकिंग में इन चैनलों में होने वाली बहस के महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता. यही प्रोग्राम फिर डिजिटल मीडिया पर भी अपलोड किए जाते हैं और ह्वाट्सऐप जैसे मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया के जरिए ये और आगे तक पहुंच जाते हैं.