बिहार के पूर्वी चम्पारण के रक्सौल में एक छोटा सा गांव पंटोका है। यह गांव भारत-नेपाल की सीमा से सटा हुआ है। यहां से आधा किमी की दूरी पर नेपाल है। एक ओर कदम रखो तो भारत और दूसरी तरफ रखो तो नेपाल लग जाता है।
पंटोका के 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग कामकाज करने नेपाल के बीरगंज जाया करते थे। कोई वहां रिक्शा चलाता था। कोई मजदूरी करता था। किसी की दुकान थी तो कोई घर बनाने का काम करता था। नेपाल जाने के लिए इन लोगों से न कभी कोई कागजात मांगे गए और न ही कोई पूछताछ हुई।
यहां की बहन-बेटियां नेपाल में ब्याही हैं और नेपाल की कई बेटियों का ससुराल पंटोका है। सालों से इन लोगों को कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि भारत और नेपाल दो अलग-अलग देश हैं। ये मिनटों में पैदल चलकर भारत से नेपाल पहुंच जाया करते थे। आधे घंटे साइकिल चलाई तो बीरगंज में होते थे।
इन दिनोंं पंटोका में सभी पुरुष दिनभर घर में ही रहते हैं। किसी के पास कोई काम नहीं है।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में सबकुछ बदल चुका है। अब ये लोग नेपाल जाते हैं तो वहां इन्हें पुलिस डंडे मारती है। एसएसबी के जवान सीमा से आगे बढ़ने ही नहीं देते। पिछले एक महीने में ही कई ग्रामीणों के साथ सुरक्षा बलों ने मारपीट की है।
ग्रामीणों को लगता था कि पहले लॉकडाउन के चलते ऐसा हो रहा था, लेकिन अब नेपाल में बाजार-दुकान-दफ्तर सब खुल गया है और भारत में भी अनलॉक शुरू हो चुका है, इसके बावजूद भारत-नेपाल सीमा नहीं खुली। पंटोका में रहने वाले भुनेसरा कहते हैं, ' कमाने-खाने बीरगंज जाते थे। चार महीने से नहीं जा पाए। घर में ही बैठे हैं। क्योंकि रक्सौल में करने के लिए कुछ है ही नहीं।'