देशभर के बड़े बाज़ारों को हिमाचल प्रदेश के सेब का इंतज़ार है. एक महीने में ये सेब बाज़ार के लिए तैयार भी हो जाएंगे. लेकिन सेब कारोबारी चिंतित हैं कि वो इस बार सेब को बाज़ार तक पहुंचा पाएंगे भी या नहीं.
क़रीब पाँच लाख नेपाली मज़दूर, जिन्हें हिमाचल प्रदेश में सेब की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, अप्रैल के बाद से बागानों में नहीं लौटे हैं.
पहले कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने परेशान किया, अब भारत और नेपाल के बीच बिगड़ते रिश्तों को लेकर सेब कारोबारी परेशान हैं.
भारत नेपाल के बीच बिगड़ते संबंधों ने गोरखा मजदूरों को लेकर अनिश्चितता पैदा कर दी है. जिन मजदूरों ने लॉकडाउन के दौरान अपने घर वापस न जाकर भारत में ही रुकने का फ़ैसला किया था वो भी बाद में वापस चले गए.
आमतौर पर नेपाली मज़दूर सेब तोड़ने से सीज़न से काफ़ी पहले ही, मार्च- अप्रैल के महीने में वापिस आ जाते थे. ये लोग सेब तोड़ने से लेकर सेब के डिब्बों की पैकेजिंग, ट्रकों में लोडिंग और अनलोडिंग के कामों में भी माहिर होते हैं.
ये लोग शारीरिक रूप से भी फ़िट होते हैं और पहाड़ों पर सेब के बक्से का भार उठाने और बागों की संकरी पगडंडियों पर पीठ पर फलों को लेकर चलने का काम भी ये आसानी से कर लेते हैं.
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Image captionसेबों के बागानों में ही सड़ने का डर
प्रदेश के पूर्व हॉर्टीकल्चर मंत्री नरेंदर ब्राग्टा के मुताबिक़, "बाग़ानों में मज़दूरों का संकट है. यह निश्चित रूप से चिंताजनक है. हमारे प्रयासों के बावजूद, नेपाली मज़दूरों ने सीज़न में आने की इच्छा नहीं जताई. अपने व्यक्तिगत स्तर पर, मैं बहुत कोशिश कर रहा हूं लेकिन मुझे ज़्यादा उम्मीद नहीं है."