राहुल गांधी कांग्रेस के लिए तब तक अपरिहार्य राजनीतिक समस्या बने रहेंगे जब तक वे संसदीय राजनीति में सक्रिय रहेंगे। उनके बिना देश की स्वाभाविक शासक पार्टी का कोई भी विमर्श पूरा नही हो सकता है क्योंकि उनकी अमोघ शक्ति है उनका उपनाम।
कांग्रेस के इतिहास में राहुल गांधी सबसे नाकाम गांधी हैंं लेकिन इसके बावजद यह ऐतिहासिक पार्टी इस अनमने नेता के परकोटे से बाहर नहींं आना चाहती है। चीन के साथ ताजा गतिरोध को लेकर राहुल औऱ उनकी मां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की भूमिका ने एक बार फिर यह प्रमाणित कर दिया है की पार्टी के शिखर पर राष्ट्रीय हितों और भारत के जनमन को समझने की बुनियादी समझ खत्म हो गई है।
इस मामले पर बुलाई सर्वदलीय बैठक में जिस तरह शरद पंवार, उद्धव ठाकरे, स्टालिन, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, मायावती, रामगोपाल यादव, सरीखे नेताओं ने टीम इंडिया की तरह एकजुटता दिखाते हुए देश दुनिया को सुस्पष्ट सन्देश दिया वह सामयिक तो था ही आम देशवासियों की भावनाओं को भी अभिव्यक्त करता है।
सवाल यह उठेगा ही कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी जनभावनाओं और जमीनी सच्चाई से अभी भी पूरी तरह कटे हुए हैं? या गांधी परिवार मोदी के विरूद्ध अपनी निजी दुश्मनी को भुनाने के लोभ में राष्ट्रीय हितों को भी अनदेखा करने से नही चुकता है।
जिस सर्वदलीय बैठक में देश की सभी पार्टियों ने एक स्वर में सरकार के माध्यम से भारतीयता को मुखर किया उसके बाद समझा जा रहा था कि कांग्रेस अपने रुख में बदलाव लाएगी। लेकिन राहुल गांधी ने फिर एक ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लिया उन्होंने इस बार सवाल पूछने की जगह मोदी को आत्मसमर्पित नेता के रूप में तंज कसा।