दूसरी कहानी ओडिशा के राउरकेला से. ‘मैं, नाम-पता बताते-बताते थक गई हूं। तुम भी आए हो, क्या करोगे जानकर?’ राउरकेला गवर्नमेंट हॉस्पिटल के ‘सखी' वार्ड में रह रही सीमा अचानक नाराज हो जाती है। हाथ हवा में तानते हुए बड़बड़ाने लगती है- ‘मेरे साथ जो कुछ हुआ सब भगवान देख रहा है। वही जवाब देगा, उसी से पूछो? क्यों किया यह सब मेरे साथ?’ आंखों से आंसू छलकने लगते है। और वह अपने बच्चे के पास चली जाती है।
अस्पताल के सखी वार्ड में सीमा बीते 22 दिनों से निगरानी में है। वह भटक गई थी। ट्रेन बंद होने से पहले मनमाड़ से राउरकेला चली आई थी। भटकती रही। लोगों से मिले खाने पर जीती रही। लॉकडाउन 3.0 में बीजू एक्सप्रेस-वे के राउरकेला से सुंदरगढ पर प्रवासी मजदूर पैदल घर वापसी को निकले तो उन्हीं के साथ हो ली।
बदहवास चल रही थी। वह पेट से थी। रास्ते में वेद व्यास के निकट सन नुआगांव के पास प्रसव पीड़ा शुरू हुई। पास ही के मिशन हॉस्पिटल में उसने संपर्क किया। कोरोना की वजह से अस्पताल ने डिलीवरी से इनकार कर दिया। दर्द की वजह से सीमा आगे नहीं बढ़ पा रही थीं। समझ में नहीं आया क्या करे। जो साथ चल रहे थे, रुकने को तैयार नहीं थे। चले जा रहे थे। उसने बच्चे को जन्म दिया।
सड़क के उस पार एक घर था। वह वहां गई। उसने घर की महिला को बताया कि वह अपने बच्चे को सड़क पर ही छोड़ कर जा रही है। नहीं जाएगी तो जिनके साथ वह चल रही थी बहुत आगे निकल जाएंगे। लिहाजा उसे जाना होगा। उस महिला ने पूछा भी कि अपने बच्चे को सड़क पर छोड़ क्यों रही है? सीमा बोली, लोग हमें छूना नहीं चाहते। बच्चे को साथ लेकर घर की लंबी दूरी तय करना मेरे लिए असंभव है। इतना कह कर सीमा चली गई।