नेपाली संसद (Nepali Parliament) के निचले सदन में नए राजनीतिक नक्शे को अपनाने के लिए संविधान संशोधन (constitutional amendment) प्रस्ताव पर आम सहमति बन गई है. प्रस्ताव में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख नेपाल का हिस्सा करार दिया गया है. बॉर्डर के ये तीनों इलाके उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की सीमा में आते हैं. अगर नेपाल की ये कल्पना धरातल पर उतरी तो कुल 395 वर्ग किलोमीटर का भारतीय भू-भाग कम हो जाएगा. पहले बात करते हैं कालापानी की जिस पर नेपाल 1990 के बाद से दावा जताता रहा है. कालापानी (Kalapani) के नेपाल (Nepal) में शामिल होने से यहां का राजनीतिक नक्शा पूरी तरह बदल जाएगा.
दोनों मुल्कों के रिश्तों में खटास पैदा होगी
नेपाल के इस नए नक्शे के मुताबिक काली माता के मंदिर साथ ही 2 किलोमीटर का भू-भाग भारत का कम हो जाएगा. इसी भू-भाग में भारतीय सेना (Indian Army), आईटीबीपी (ITBP), एसएसबी (SSB) के कैंप मौजूद हैं. यही नहीं कुमाऊं मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस भी यहीं मौजूद है. अगर काली नदी के उद्गम को लिपुलेख मान लिया जाय तो कैलाश-मानसरोवर जाने के लिए भी नेपाल पर निर्भर रहना होगा. यही नहीं ओम पर्वत भी नेपाल के हिस्से आ जायेगा. ओम पर्वत भारतीयों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. नेपाल ने हाल के दिनों में लिम्पियाधुरा पर भी दावा जताया है. नेपाल का दावा है कि लिम्पियाधुरा से ही काली नदी लिपुलेख जाती है.
लिम्पियाधुरा से निकलने वाली नदी को भारत के लोग कुटी-यांगति नदी कहते हैं. अगर लिम्पियाधुरा को ही काली नदी का स्रोत मान लिया जाय तो भारत के तीन गांव नेपाल का हिस्सा हो जाएंगे. इस इलाके में गुंजी, कुटी और नाभी बड़े भारतीय गांव हैं. इन गांवों के लोग मौसम के मुताबिक माइग्रेट होते हैं. सीनियर जर्नलिस्ट और नेपाल मामलों के जानकार प्रेम पुनेठा कहते हैं कि नेपाल सरकार ने सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाने की कोशिश नहीं की. इसके उलट संसद में नए नक्शे का प्रस्ताव पास करा दिया. जो भविष्य में दोनों मुल्कों के रिश्तों में खटास पैदा करेगा. साथ ही पुनेठा कहते हैं कि अधिकांश सीमा विवाद बातचीत से हल होते हैं, ऐसे में भारत-नेपाल सीमा विवाद भी वार्ता से ही हल होगा. लेकिन सवाल ये है कि भविष्य में जब भी दोनों मुल्क वार्ता करेंगे, सबसे बड़ा रोड़ा संसद से पास हुआ यही प्रस्ताव बनेगा.