किसी स्टार का देहांत हो तो टीवी से लेकर अखबारों और मैगजीन तक... हर जगह खबर होती है. अच्छी पैकेजिंग के साथ शो बनाए जाते हैं. खूबसूरत तस्वीरों से सजे आर्टिकल्स छपते हैं, लेकिन उन लोगों की मौत खबर नहीं बन पाती, जो पर्दे के पीछे रहते हैं. हां अगर उनके नाम के आगे शोमैन जैसा कोई टाइटल जुड़ा हो, तो जरूर उनकी बात होती है, लेकिन अगर उन्होंने शो बिजनेस में रहकर भी अपनी फिल्मों या किरदारों के जरिए show off न किया हो, तो उनकी कोई बात नहीं करता. मौत तो दबे पांव आती ही है... उनकी खबर भी शोर नहीं मचाती.
गुम हुई मिडिल क्लास आवाज
इसलिए आज हम आपको उस फिल्ममेकर के बारे में बता रहे हैं, जिसके निधन के साथ ही हिंदी सिनेमा की मिडिल क्लास पहचान चली गई. ऋषिकेश मुखर्जी की ही तरह बासु चटर्जी की फिल्मों में भी कुछ भी Larger than life नहीं था. वो आम लोगों की कहानी कहते थे. आम आदमी की जिंदगी को सिल्वर स्क्रीन पर दिखाते थे. उनकी फिल्मों का हीरो अकेले 10 गुंडों को नहीं मारता था, न ही अपनी प्रेमिका को खुश करने के लिए लंबे-लंबे डायलॉग्स वाली शायरी बोलता था.