भारत के सख्त लॉकडाउन को संभ्रांतों ने तो सराहा, लेकिन अमीरों का लॉकडाउन से प्रेम गरीबों को महंगा पड़ रहा है

रुचिर शर्मा, ग्लोबल इन्वेस्टर, बेस्टसेलिंग राइटर और द न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार

मैं किसी काम से भारत आया था, तभी प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की, जो दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन माना गया। उन्होंने 18 दिन की महाभारत का आह्वान करते हुए कहा कि कोरोना के खिलाफ युद्ध जीतने में 21 दिन लगेंगे। दो महीने से भी ज्यादा वक्त हो चुका है और मैं यहीं फंसा हूं और दिल्ली स्थित अपने घर से बाहर नहीं जा पा रहा हूं। 

मेरी पहली चिंता यह थी कि हमेशा की तरह भारत जन सुरक्षा व कल्याण के लिए अमीर देशों के उपायों की नकल कर रहा है। मैंने जब बड़े उभरते हुए देशों के अधिकारियों से बात की तो किसी ने भी संपूर्ण लॉकडाउन का समर्थन नहीं किया क्योंकि नए बेरोजगारों को संभालने के लिए संसाधनों के बिना अर्थव्यवस्था को बंद करने का नतीजा भूख और मौत होगा। कुछ ही दिनों में लाखों प्रवासी मजदूर देश के बड़े शहरों से निकलने लगे, हजारों तो मेरे दरवाजे के सामने से गुजरेे।

ज्यादातर युवा पुरुष थे, जिन्हें निर्माण कार्यों से या घबराए हुए मकान मालिकों ने निकाल दिया। उन्होंने अजनबियों की दया पर जीने की योजना बनाई और सैकड़ों किलोमीटर दूर, गावों में घर जाने के लिए पैदल चलते रहे। मुझे पूछना पड़ा कि सोशल डिस्टेंसिंग के बिना, इनमें से कितने घर पहुंच पाएंगे। एक युवा ने मुझसे कहा, ‘इससे फर्क नहीं पड़ता। सरकार कहती है कि गंभीर बीमारी है, इसलिए घर जाने के अलावा क्या कर सकते हैं?’

प्रकाशित तारीख : 2020-06-03 11:39:58

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