नेपाल और भारत के बीच जारी सीमा विवाद अभी थमता नहीं दिख रहा है. नेपाल की राजनीति में यह मुद्दा अब भी उतना गर्म है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने 'द हिन्दू' को दिए इंटरव्यू में कहा है कि इस मुद्दे पर भारत से बात करना चाहते हैं लेकिन बात नहीं हो पाई है.
ज्ञावली ने कहा, "भारत को कालापानी से सुरक्षा बलों को वापस बुला लेना चाहिए और यथस्थिति से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए. सीमा विवाद का जल्द से जल्द समाधान होना चाहिए. हमलोग चाहते हैं कि भारत सुगौली संधि का सम्मान करे. सबसे अच्छा तो यही होता कि भारत अपने सुरक्षा बलों को वापस बुला लेता और हमारी ज़मीन हमें वापस कर देता. नेपाल के इलाक़े में सड़क बनाने का काम भारत को नहीं करना चाहिए था. अब भी पूरे विवाद को जितनी जल्दी हो सके निपटाने की ज़रूरत है."
ज्ञावली ने कहा, "पिछले साल नवंबर में भारत ने अचानाक से राजनीतिक नक्शा जारी कर हमें निराश किया था. यह नक्शा 1997 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री आईके गुजराल के नेपाल दौरे में बनी सहमति के ख़िलाफ़ है. नेपाल हमेशा से कोशिश करता रहा है कि विदेश सचिव के स्तर पर सीमा विवाद पर भारत से बातचीत शुरू हो लेकिन नहीं हो पाई. हमें भारत की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिलता है."
नेपाल सुगौली संधि के आधार पर लिपुलेख और कालापानी को लेकर दावा करता है. 19वीं सदी की शुरुआत में नेपाली शासकों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए समझौते को 21वीं सदी के राजनयिक विवाद में आधारशिला मानना सही है?
इस सवाल के जवाब में नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा, "ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को हम इस तरह से नहीं देख सकते. ब्रिटिश इंडिया से लड़ाई में नेपाल की हार के बाद ही सुगौली संधि हुई थी. नेपालियों के लिए सुगौली संधि को याद करना किसी गर्व से नहीं जुड़ा है. हम ब्रिटिश इंडिया के साथ लड़ाई में अपना एक तिहाई क्षेत्र हार गए थे. हम उस तथ्य को कैसे भूल जाएं कि एक संधि हुई थी जिसमें सीमा का निर्धारण हुआ था. सर्वे टीम 1981 से इसी आधार पर सीमा तय करती रही है. सुगौली संधि में ही नेपाल और भारत के बीच की सरहद तय हुई."