कालापानी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में है। ये पिथौरागढ़ जिले में आता है। ये करीब 35 वर्ग किलोमीटर का इलाका है। यहां बड़ी झील भी है। ये एक ऐसी जगह है, जिसकी तुलना आप डोकलाम से कर सकते हैं। यहां तीन देशों की सीमाएं आकर त्रिकोण बनाती हैं। ये देश भारत, नेपाल और चीन हैं।
चीन लगातार इस इलाके पर कब्जा करने की कोशिश भी करता रहा है। ये भी माना जा रहा है कि ताजातरीन इस विवाद की जड़ में कहीं ना कहीं चीन है, जिसकी शह पर ही नेपाल में प्रदर्शन हो रहे हैं और इस मुद्दे को नाहक हवा दी जा रही है।
नेपाल का कहना है कि भारत और चीन के बीच 1962 में जब युद्ध हुआ था, तब भारत ने उत्तर बेल्ट में आगे आकर उसके कई इलाकों का इस्तेमाल किया था। लेकिन युद्ध के बाद भारत ने इस बेल्ट की अन्य जगहों से तो अपने सेना चौकियां हटा लीं लेकिन कालापानी को बरकरार रखा। यहां इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस के जवान तैनात रहते हैं। ये भारत के सीमाई इलाकों के सबसे ऊंचे इलाकों में भी गिना जाता है।
कालापानी भारत के लिए रणनीतिक तौर पर खासा महत्वपूर्ण है। वो यहां से अपने सैनिक नहीं हटाना चाहता। वो इस इलाके का अपना मानता है. 1962 के बाद से लगातार ही भारत इस इलाके में बना रहा है। नेपाल ने भी कभी इसे लेकर कोई विवाद खड़ा नहीं किया।
कहना चाहिए कुछ सालों पहले तक भारत और नेपाल के बीच बहुत अच्छे संबंध रहे थे लेकिन अब उनमें लगातार तनाव घुलता दिख रहा है। इसकी वजह कहीं ना कहीं से चीन को माना जा रहा है।
हालांकि नेपाल का दावा है कि कालापानी और लिपु लेख को उसने ईस्ट इंडिया कंपनी से हासिल किया था। यहां वो 1961 में जनगणना भी करा चुका है, तब भारत ने कोई आपत्ति नहीं की थी। लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि उसने नक्शे में कुछ भी नहीं बदला है। जो नक्शा दशकों से जारी हो रहा है, ये हू-ब-हू वैसा ही है।
ब्रिटिशकाल में 1879 में जो नक्शा तैयार किया गया, उसमें ये भारत का हिस्सा था। दावा ये भी है कि ब्रिटेन में इस नक्शे की मूल कॉपी अब भी मौजूद है। ये इलाका 3600 मीटर की ऊंचाई पर है। ठंड के मौसम पर यहां तापमान माइनस 12 डिग्री या और नीचे चला जाता है।
इसी इलाके से काली नदी भी निकलती है। जो उत्तराखंड की चार बड़ी नदियों में एक है। इस नदी पर भी नेपाल अपना दावा जताता रहा है। इस नदी काली नदी, महाकाली नदी के नाम से जानते हैं।