देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि 19 दिनों तक बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने गरीबों को हो रही तकलीफों पर खेद जताया था. समाज का मिडिल क्लास तमाम चुनौतियों को झेलने के बावजूद भी इसे जरूरी क़दम बता रहा है.
यह मिडिल क्लास उन तकलीफों को नहीं समझ रहा, जिससे बेघर मजदूर और गरीब लोग गुजर रहे हैं. ये लोग भूख से उपजी तड़प को नहीं समझते.
देश का हर वंचित तबका इस समय अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है. हमें उनकी तकलीफों को सुनना और समझना चाहिए. उनके लिए कम से कम इतना तो हम कर ही सकते हैं.
कारवां ए मोहब्बत ने पिछले कुछ दिनों से जारी अपने राहत अभियान में कई ऐसी कहानियां देखी और सुनी हैं, जिन्हें जनता को और हमारे हुक्मरानों को जानना चाहिए.
लॉकडाउन के इस वक्त में हर एक गरीब के पास अपनी अलग पीड़ा, अलग कहानी है. इन्हीं कुछ कहानियों को हम आपसे साझा कर रहे हैं.
ये कहानियां हरियाणा के नूंह जिले की है. 22 साल के हाशिम सीमांत बटाईदार किसान हैं. इनके परिवार में कुल आठ लोग हैं.
खेती से इतने लोगों का भरण-पोषण नहीं हो पाता इसलिए हाशिम के पिता ट्रक चलाने का काम करते थे. उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में ट्रक से सामान लेकर जाना पड़ता था.
ट्रक में खलासी की आवश्यकता होने पर उन्होंने अपने 15 वर्षीय बेटे को साथ रख लिया. जिस दिन लॉकडाउन की घोषणा हुई, दोनों बाप-बेटे बंगाल में कहीं हाईवे पर थे. ये लोग प्याज लेकर असम की ओर जा रहे थे.
लॉकडाउन के बाद कई बार हाशिम के पास उनके पिता का फोन आया. बीच रास्ते में फंसे होने के कारण हाशिम के पिता को दो तरह की चिंताएं खाई जा रही थी.
पहली चिंता परिवार की थी, जो हजारों किलोमीटर दूर हरियाणा में भूख से संघर्ष कर रहा था और दूसरी चिंता थी ट्रक का माल जल्द से जल्द गंतव्य स्थल पर पहुंचाने की.