केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कंपनियों को राहत देने के कई उपायों पर विचार कर रही है, जिनसे उन्हें लॉकडाउन खुलने के बाद छंटनी न करनी पड़े। सरकार यह इंतजाम कर सकती है कि कंपनियों को कर्मचारियों का बोनस रोकने और मिनिमम वेज में अनिवार्य रूप से होने वाली बढ़ोतरी न करने, ओवरटाइम पेमेंट रेट में कमी करने और कामकाज की अवधि बढ़ाने की छूट मिल जाए। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि ये बदलाव नोटिफिकेशन या अमेंडमेंट्स के जरिए किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि कोविड 19 महामारी से उपजे आर्थिक संकट से निपटने के लिए ये बदलाव सालभर लागू रह सकते हैं। अधिकारी ने कहा, 'इससे केंद्र सरकार पर कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं आएगा, लेकिन एंप्लॉयर्स के लिए एंप्लॉयमेंट कॉस्ट घट जाएगी।
पेमेंट ऑफ बोनस ऐक्ट 1965 कहता है कि कुछ श्रेणियों के प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों को मुनाफे या उत्पादन या उत्पादकता के आधार पर सालाना 8.33 प्रतिशत की दर से बोनस दिया जाना चाहिए। इसके अलावा कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर वर्कर्स के मिनिमम वेज का रिवीजन 8-12 प्रतिशत सालाना की दर से होता है। सरकार का मानना है कि अगर यह इंक्रीमेंट टाल दिया जाए तो इससे एंप्लॉयर्स के पास यह पैसा बचेगा। ये बदलाव ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की फर्मों पर लागू होंगे, जिनमें देश की 50 करोड़ की वर्कफोर्स का बमुश्किल 10 प्रतिशत हिस्सा काम करता है, लेकिन इससे खासतौर से माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज को काफी बचत हो जाएगी। इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन के प्रेसिडेंट लोहित भाटिया ने कहा, 'कानूनों में मामूली बदलाव से यह सकारात्मक संकेत जा सकता है कि सरकार को एंप्लॉयर्स की फिक्र है। इससे काफी जॉब्स बचाने में मदद मिल सकती है।