जम के होली खेलिए सब । त्योहारों को फीका मत जाने दीजिए ।
वैसे भी हमारे सभी त्योहारों में बोल बोल कर इसको इतना फीका बना दिया गया है कि लगता ही नहीं कि कोई त्योहार है ।
त्योहारों का "श्री" ख़त्म कर दिया गया ।
किसी को तिलक मत लगाइए , सबको रंगों से सराबोर करिये ।
तिलक रोज लोग लगाते हैं । एक यही दिन तो है जिसमें सबको अपने रंग से रंगना है ।
खुल कर होली खेलिए पर सभ्यता और शीलता से ।
किसी को सुखा न छोड़ें । रंगों का त्योहार है, तिलक से काम नहीं चलेगा ।
तिलक लगवाने वाले बनतु स्वभाव के होते हैं , वो इतना बनने में चूर रहते हैं कि एक त्योहार का मज़ा इन लोगों ने खत्म कर दिया । ये तिलक लगवाने वाले ही होली के त्योहार को फीका करने में सबसे आगे हैं । इनको अवश्य रंगों में डुबाइये ताकि इनके अंदर का फीकापन और बनतु पन रँग जाए ।
सभी से निवेदन है अपने त्योहारों को बचाइए ।
एक समय था जब वसंत आते ही रोज़ बच्चों की टोलियाँ रंग लेकर दौड़ती थी । साला आज होली होने के बावजूद कहीं भी ऐसा दृश्य नहीं दिखाई दे रहा है । बहुत ही ज्यादा दुःख होता है कि हम क्या हो गए ?
लोग ढोलक , मजीरा लेकर टोली के साथ गाते बजाते निकलते थे । आहा कितना मज़ा आता था । वह सब दिन खत्म कर दिए गए advance बनने के चक्कर में ।
वामी, खलकामी , इत्यादियों ने हमारे त्योहारों के प्रति ज़हर बो दिया है हमारे मस्तिष्क में ।
समाज की एकरूपता और रंगीनियाँ खत्म कर दी गयी । इसको बचाइए और दुबारा से इसके खोए हुए "श्री" को वापस लाईये ।
आईये खेलते हैं होली जमकर । जो बोले कि तिलक लगा के पैर छुओ , या गले मिलों बस तो उसको तो अवश्य ऐसा भिगोइये और रंग लगाइए की वह भी समझ जाएं ।
हाँ पर वृद्धों का विशेष ध्यान रखें ।
" आज बिरज में होली रे रसिया "
होली खेलें रघुबीरा अवध में, होली खेलें रघुबीरा ।
होली की ढेर सारी बधाइयाँ ।