महाराष्ट्र में बीजेपी पर सवा सेर साबित हो रहे हैं उद्धव-पवार, हर मुद्दे पर देते हैं तुर्की-ब-तुर्की जवाब

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सुजाता आनंदन

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने महिला सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा के लिए विधानसभा का दो दिवसीय सत्र बुलाने की सलाह देते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, तो उन्हें जिस किस्म का उत्तर मिला, इसकी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की होगी। दरअसल, इस पत्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बीजेपी-शासित राज्यों में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार गिनाए हैं और राज्यपाल को सलाह दी है कि वह इन अपराधों को रोकने के लिए प्रधानमंत्री से संसद का चार दिवसीय विशेष सत्र बुलाने का निवेदन करें।

वैसे, यह पहला अवसर नहीं है जब महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार ने विपक्ष और राज्यपाल को मात दी है। कम-से-कम दो अन्य मुद्दों पर राज्य सरकार ने विपक्ष का पासा पलट दिया है।

यह त्योहारों का समय है। भारतीय जनता पार्टी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) राज्य में मंदिरों को फिर खोलने के लिए आंदोलन चला रही है। जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अभी की स्थिति में ऐसा करने से लगातार मना किया, तो ये पार्टियां पहले बीजेपी की सहयोगी रही शिव सेना के अब हिन्दू विरोधी हो जाने का आरोप लगाने लगीं। सब जानते हैं कि महाराष्ट्र में गणेशोत्सव किस धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन कोविड के मद्देनजर सरकार ने इसे भी सीमित ढंग से मनाया जाना सुनिश्चित कियाः सामुदायिक पंडाल लगाने की कुछेक मंडलों को ही अनुमति दी गई; सार्वजनिक प्रतिमा विसर्जनों की अनुमति नहीं दी गई और सागर किनारे और विभिन्न शहरों में झीलों और नदियों के किनारे भीड़ जमा होने से रोकने के लिए सरकार ने निजी तालाबों, बाथ टबों और बाल्टियों में प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए हाउसिंग सोसाइटियों को बड़ी मात्रा में अमोनियम बायकार्बोनेट उपलब्ध कराए ताकि वे पानी में ठीक से घुल जाएं।

लेकिन स्थानीय चुनाव नजदीक हैं तो विपक्ष ने सरकार को निशाने पर रखने की कोशिश की। अगले कुछ महीनों में बृहन्मुंबई, नागपुर और नाशिक में नगर निगमों के चुनाव हैं। इनमें से नाशिक मंदिरों का शहर है। यहां एमएनएस का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। हालांकि मस्जिद और चर्च समेत सभी धर्मस्थल बंद हैं, फिर भी राज्य सरकार पर हिन्दू विरोधी होने के आरोप लगाए जा रहे हैं।

ऐसे में, उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और एमएनएस पर लोगों के जीवन से खेलने की राजनीति का आरोप लगाया है। राज्य कोविड की दूसरी लहर के अंतिम चरण से जूझ रहा है, इसीलिए मॉल अब भी बंद हैं जबकि रेस्तरां, शादी के हॉल, दुकानें, पार्क और भीड़-भाड़ वाले अन्य सभी संभावित क्षेत्रों पर प्रतिबंध जारी हैं।

डॉक्टरों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री ने कहा भी कि महाराष्ट्र में जिस तरह मामले बढ़े हैं, ऐसे में, राज्य को तीसरी लहर से बचने के लिए हर संभव उपाय करने होंगे। उन्होंने केरल का उदाहरण दिया जहां ईद और ओणम की वजह से छूट के बाद कोविड ने लोगों को परेशान कर दिया है। उन्होंने कहाः ‘त्योहार महत्वपूर्ण हैं लेकिन लोगों के जीवन अधिक महत्व रखते हैं। अगर हम अभी धैर्य नहीं रखेंगे, तो यह रोग वर्षों तक हमारे जीवन को परेशान करता रहेगा और जितने लोग मंदिर जाते हैं, उससे ज्यादा लोग जान से हाथ धो बैठेंगे।’

ठाकरे ने विपक्षी नेताओं पर लोगों की जान खतरे में डालकर रैलियां करने का आरोप भी लगाया। इस मुद्दे पर जन विरोधी माने जाने के बाद बीजेपी नेता अब एक तरह से छिप गए हैं। कुछ नेताओं के कलंक से बचने के लिए विदेश चले जाने की भी खबरें हैं।

फिर भी, स्थानीय निकायों में आरक्षण का मुद्दा ऐसा नहीं है जिससे आसानी से निबटा जा सके। जिला परिषद और पंचायत समिति कानून, 1961 के तहत महाराष्ट्र में इन निकायों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण वर्षों से लागू है। लेकिन इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को निरस्त कर आरक्षण को समाप्त कर दिया जिससे ये सभी सीटें सभी वर्गों के लोगों के लिए खुल गईं।

राज्य की आबादी में ओबीसी की बड़ी संख्या है और हाल के वर्षों में उनके और उच्च जाति के मराठाओं के बीच तनातनी होती रही है। दरअसल, मराठा भी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। हालांकि देवेन्द्र फडणवीस सरकार ने उन्हें आरक्षण दे भी दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट उसे भी निरस्त कर चुकी है क्योंकि यह आरक्षण देश भर में कोटे की सीमा से अधिक थी।

इन सब वजहों से विभिन्न वर्ग अपने अधिकार छीने जाने की बातें कहते हुए आंदोलित हैं। बीजेपी नेता पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। वह ओबीसी के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं जबकि उनका पितृ संगठन- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उच्च जातियों के लिए ये सीटें खोल दिए जाने की वजह से प्रसन्न है। अगर स्थानीय निकाय चुनाव इस साल नवंबर से समय पर होना शुरू होते हैं, तो महाराष्ट्र सरकार के लिए यह मुश्किल तो रहेगी कि वह आरक्षणों को जारी रखने के लिए किस तरह कानून बनाए।

पर इस मामले में शरद पवार ने दखल दिया है। उन्होंने घोषणा की है कि अगर सरकार समय पर कानून नहीं बना पाई, तो उनकी पार्टी उन सीटों पर सिर्फ ओबीसी उम्मीदवार देगी जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले आरक्षण रहा था। अगर कोई एक पार्टी सिर्फ ओबीसी उम्मीदवार देती है, तो अन्य पार्टियों से भी ऐसा ही करने की उम्मीद है और तब, ओबीसी को शिकायत का कोई अवसर नहीं होगा। इससे इस मुद्दे पर राजनीतिक बढ़त लेने की भी विपक्ष की ख्वाहिश की हवा निकल गई।

ठाकरे और पवार जिस तरह मुद्दों से निबट रहे हैं और दोनों ने जिस तरह की राजनीतिक परिपक्वता दिखाई है, उसने दोस्तों और विरोधियों- दोनों को प्रभावित किया है। इसीलिए बीजेपी के अंदर ही शिवसेना के साथ फिर गठबंधन करने की चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन इसकी संभावना भी दूर की कौड़ी है क्योंकि शिवसेना की महा विकास अघाड़ी सरकार में बेहतर स्थिति है। बीजेपी कभी भी शिव सेना की तुलना में दूसरे नंबर पर रहना स्वीकार नहीं करेगी या ठाकरे या उनकी पार्टी के हाथों में सत्ता की बागडोर नहीं सौंपेगी।

प्रकाशित तारीख : 2021-09-26 06:17:00

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