प्रशांत किशोर के लिए आसान नहीं होगी बिहार की राजनीतिक डगर

अमर उजाला
अमर उजाला

बिहार में नए राजनीतिक दल बनाने की सोच रहे प्रशांत किशोर राजनीति में क्या उतने सफल हो पाएंगे, जितने विभिन्न दलों के लिए चुनावी रणनीति बनाने में रहे। यह आसान नहीं है, क्योंकि खुद चुनाव लड़ना दूसरों को चुनाव लड़ाने से कहीं कठिन काम है।

प्रशांत किशोर को एक सफल चुनावी प्रबंधक माना जाता है। उन्होंने 2017 में यूपी को छोड़कर जिसके लिए भी रणनीति बनाई वह सरकार बनाने में सफल हुआ। तब सपा के साथ समझौते में राज्य की 403 में से 105 सीटों पर लड़ी कांग्रेस केवल 7 सीट ही जीत पाई थी।

पीके ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी रणनीति बनाने के लिए राजनीतिक प्रबंधन के क्षेत्र में पहला कदम रखा। भाजपा को 545 में से 282 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला और पीके को एक कुशल रणनीतिकार माना जाने लगा।

इसके बाद उन्होंने बिहार में नीतीश कुमार के लिए रणनीति बनाई और राजद के साथ तालमेल कराया। जदयू-राजद गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला। फिर क्या था, पीके को पंजाब में अमरिंदर सिंह, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, आंध्र में जगन मोहन रेड्डी, बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में एमके स्टालिन के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम मिलता गया। हर जगह उन्हें सफलता मिली। उनकी कंपनी आई-पैक एक बड़े मीडिया ब्रांड के रूप में उभरी।

यह पहली बार नहीं है, जब प्रशांत किशोर स्वयं सक्रिय राजनीति में भाग लेंगे। इससे पहले वह दो वर्ष तक जदयू के महासचिव पद पर रह चुके हैं। जदयू छोड़ने के बाद उन्होंने पटना में अपना राजनीतिक दल बनाने का प्रयास किया था। लेकिन इस बीच चुनावी रणनीति बनाने का काम मिल गया और सक्रिय राजनीति में उतरने की उनकी योजना टल गई। एक बार फिर वह राजनीति में अपना भाग्य आजमा सकते हैं।

अपने लिए भाजपा में तलाशी थी भूमिका 
सूत्रों के अनुसार 2014 में पीके ने अपने लिए भाजपा में भूमिका तलाश की थी। फिर अरविंद केजरीवाल के सामने उन्होंने खुद को आम आदमी पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक बनाने का प्रस्ताव दिया। जदयू में तो महासचिव रहे भी। पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के राजनीतिक सलाहकार बनने का प्रयास किया। लेकिन अधिकतर नेताओं ने उन्हें राजनीतिक भूमिका देने के बजाय पैसे का भुगतान किया।

क्या राजनीति में होंगे सफल
दल बनाने के लिए सिर्फ धन या रणनीति की जरूरत नहीं होती। सबसे बड़ी जरूरत लोगों से सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव की होती है। राजनीतिक समीक्षक आशुतोष कहते हैं कि पीके बिहार में यदि अगले 4 सालों में कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर लोगों के मन में जगह बना पाते हैं तभी वह राजनीति में सफल हो पाएंगे। और यह आसान नहीं है।

 

प्रकाशित तारीख : 2021-05-04 07:33:00

प्रतिकृया दिनुहोस्