यह सवाल स्टंट का नहीं है। जब सैंकड़ों हज़ारों लोग आक्सीजन की कमी की वजह से तड़प कर मर गए तब यह सवाल केवल स्टंट का नहीं होना चाहिए। कुछ चैनलों ने फैसला किया है कि वे चुनावी नतीजों को कवर नहीं करेंगे। हमें देखना चाहिए कि क्या ये चैनल जो चुनावी नतीजों को कवर नहीं करेंगे, कोविड की नाकामी को लेकर सरकार से सवाल करेंगेरु चुनावी नतीजों को कवर न करने के जिस नैतिक बल का प्रदर्शन कर रहे हैं क्या वे उस नैतिक बल से उस सरकार को घेरेंगे जिसके झूठ को लोगों तक पहुंचाते रहेरु
भारत समाचार ने सबसे पहले फैसला किया कि वह कवर नहीं करेगा। भारत समाचार को अलग रखा जाना चाहिए क्योंकि यह चैनल तब भी कोविड को लेकर रोज़ रात को सवाल कर रहा था जब कोई नहीं कर रहा था। यूपी के दर्शक जानते हैं कि इसने संकट आने पर ही नहीं बल्कि संकट आने के पहले से अपनी प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखा। लोगों को सतर्क किया और सरकार से सख्त सवाल किया। लेकिन क्या इसी श्रेणी में आप टाइम्स नाउ को रख सकते हैंरु टाइम्स नाउ ने कोविड को लेकर जो लापरवाही हुई है उसे लेकर क्या कियारु पूरे साल हर बात में चुनाव को कवर करने वाला यह चैनल अब अगर कहे कि चुनावी नतीजों को कवर नहीं करेगा तो यह नौटंकी है। टाइम्स नाउ संसाधनों से लैस चैनल है। अगर दम है तो अपने रिपोर्टर को अहमदाबाद से लेकर पटना तक खड़ा कर दे और कवर करके दिखा दे। इसलिए आप दर्शक एक बार फिर इस तरह के चैनलों की नैतिकता की नौटंकी से छले जाने वाले हैं।
अब सवाल आता है कि क्या चुनावी नतीजों को कवर करना चाहिएरु मेरी राय में नहीं करना चाहिए। हमने जिन हुक्मरानों पर भरोसा किया उन्होंने सबको फंसा दिया। कितने परिवारों में कितने लोग खत्म हो गए। आपके हमारे प्रधानमंत्री ने संवेदना के दो शब्द नहीं कहे हैं। चुनाव आयोग भी दोषी है। मद्रास हाईकोर्ट ने ठीक कहा है। बंगाल जीतने के लिए आठ आठ चरणों में चुनाव की रणनीति बनाई गई। जो चुनाव एक या दो चरण में खत्म हो सकता था उसे लंबा खींचा गया। जो मीडिया घराने आज कवरेज न करने की नौटंकी कर रहे हैं उन लोगों ने चुनाव आयोग की इस भूमिको को लेकर कोई सवाल नहीं किया है।
मेरी यही राय है कि किसी चैनल को चुनावी नतीजे के दिन कवर नहीं करना चाहिए। किसी नेता का इंटरव्यू नहीं चलाना चाहिए। ये अब डिज़र्व नहीं करते हैं। किसी लायक नहीं हैं। इन्हें आप जीतने दीजिए। छोड़ दीजिए इनके लिए सारे मैदान। इन्हें किसी के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पूरा साल था कोविड की तैयारी का लेकिन नौटंकी और प्रोपेगैंडा में चला गया। यहां तक कि बीजेपी के नेता समर्थक भी अपने लिए बेड का इंतज़ाम नहीं कर सके। बिहार के चीफ सेक्रेट्री की मौत हो गई। न जाने कितने आम और खास चले गए। इसलिए कि हमने कोविड से लड़ाई छोड़ दी थी। यह लापरवाही तब की गई जब अर्थव्यवस्था चरमरा रही थी।
इसलिए सभी को एक फैसला लेना चाहिए। चुनावी नतीजों को कवर नहीं करना चाहिए। लेकिन उसका मकसद साफ होना चाहिए। मकसद होना चाहिए कि हम यह बताना चाहते हैं कि लोगों की मौत के ज़िम्मेदार कारणों में हमारा चुनाव आयोग भी है। हमारी सरकार भी है। हमारे प्रधानमंत्री भी हैं। हमारी राज्य सरकारें भी हैं। मकसद बताए बगैर सिर्फ कवरेज न करने का फैसला कोई मायने नहीं रखता है। हम इस झांसे में नहीं आना चाहते कि सिर्फ ऐसा करने से ये गिद्ध चैनल पत्रकारिता की तरफ लौट आएंगे। उन्हें मालूम है कि उनके झूठ के कारण उनके अपने भी नहीं बच सके। उन्हें सच्चाई मालूम है लेकिन वो बता नहीं रहे हैं।
इसलिए दो बातें हैं। एक कि चुनावी नतीजों का कवरेज न हो। दूसरा इस फैसले को लेकर कोई चैनल अगर नैतिकता बघारे तो उसकी समीक्षा हो कि वह इस एक साल के दौरान कोविड को लेकर क्या कर रहा था, इस एक महीने के दौरान कोविड को लेकर किस तरह का कवरेज़ कर रहा थारु
आप दर्शकों से हाथ ही जोड़ सकता हूं। आप न्यूज़ चैनल ऑन न करें। अपने आप को चैनलों की अश्लीलता से दूर रखिए। यह वक्त इंसान होने का है। आप किसी भी चैनल पर चुनावी नतीजे का कवरेज़ मत देखिए। अगले दिन अखबार में जब खबर छप कर आए तो इस महामारी में मारे गए उन सभी लोगों की याद में उस खबर पर थूक दीजिए। याद रखिएगा इन नेताओं ने आपको मरवा दिया जिन्हें आप देवता समझते थे। आई टी सेल का डर मत दिखाइये न इससे डरिए। जो सच है कहिए। रोइये बैठ कर इस देश में इस दौर में ऐसा हुआ।