भारत को लेकर चीन की भाषा अकस्मात बदल गई है। भारत को लेकर उसके रुख में नरमी देखी गई है। पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों के साथ संघर्ष करने वाले चीन ने रविवार को कहा कि भारत हमारा दोस्त और सहयोगी है। हम एक दूसरे के लिए खतरा या प्रतिद्वंद्वी नहीं है। दोनों देश एक दूसरे की अनदेखी नहीं कर सकते। चीन ने कहा कि अच्छे वातावरण में सक्षम स्थितियां बनाकर सीमा विवाद समेत सभी मतभेदों को दूर कर सहयोग को और मजबूत किया करेंगे। चीन और भारत मिलकर बहुध्रुवीय दुनिया का विकास कर सकते हैं। हालांकि, भारत के साथ संबंधों पर अपने लंबे जवाब में वांग ने चीनी सेना की वापसी के मसले पर चर्चा नहीं की। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चीन की भाषा में इस नरमी के क्या बड़े नििहतार्थ हैं। अकस्मात भारत को लेकर चीन के रुख में बड़ा बदलाव क्यों आया है। चीन के इस रुख में बदलाव की बड़ी वजह क्या है।
प्रो. पंत का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच तल्ख होते रिश्ते इस नरमी की एक बड़ी वजह है। हाल में पेंटागन से जारी अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में चीन को प्रबल विरोधी बताया गया है। हाल में विदेश नीति पर अपने भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी चीन को अमेरिका का सबसे गंभीर प्रतिद्वंद्वी करार दिया। बाइडन प्रशासन भी इस बात को मान चुका है कि चीन अपनी सेना के आधुनिकीकरण में लगा हुआ है। दक्षिण चीन सागर, हिंद प्रशांत क्षेत्र और ताइवान को लेकर चीन अमेरिका को सीधे टक्कर दे रहा है। चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना खड़ी कर दी है।
इसके अलावा अमेरिका का चीन के साथ मानवाधिकारों, बौद्धिक संपदा, आर्थिक नीतियों समेत कई मसलों पर टकराव है। इसलिए चीन अब अपना पूरा ध्यान हांगकांग और ताइवान पर लगाना चाह रहा है। उन्होंने कहा कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृष्य में चीन निश्चित रूप से भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते खत्म करने का मन बना रहा होगा। इसके बावजूद चीन ने लद्दाख पर अपने दृष्टिकोण का खुलासा नहीं किया है। इससे जाहिर होता है कि उसने लद्दाख का मुद्दा छोड़ा नहीं है। इससे जाहिर होता है कि वह सैन्य टकराव को वार्ता के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने का ख्वाहिश रख रहा है।