कृषि सुधार के तीनों नए कानूनों के विरुद्ध किसान आंदोलन को लेकर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने विपक्षी दलों को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा, 'किसानों का अहित कर अपने राजनीतिक मंसूबे को पूरा करना ठीक नहीं है। देश में लंबे समय से कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसे कानून बनाकर पूरा किया गया।' वे शनिवार को यहां एक समारोह में बोल रहे थे।
विपक्षी दलों पर नाराजगी जताते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में असहमति और विरोध का अपना स्थान है। लेकिन मतभेद और विरोध देश को क्षति पहुंचाने की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए। आंदोलन करने वाले संगठन, मतभेद वाले मुद्दों पर बात करने को तैयार नहीं हैं। एक दर्जन बार इन संगठनों से चर्चा हुई, जिसमें कई आवश्यक मुद्दों पर संशोधन तक के प्रस्ताव दिए गए।
संसद में कई घंटों की चर्चा में विपक्षी दलों ने अपनी बात तो रखी, लेकिन कानून के कथित एतराज वाले प्रविधानों का जिक्र तक नहीं किया। किन ¨बदुओं पर आपत्ति या कमी है, किसी ने बताना मुनासिब नहीं समझा। समारोह में जुटे युवाओं से उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को इस तरह की राजनीति करने वालों पर विचार करना चाहिए। पिछली वार्ताओं में संशोधन के प्रस्ताव जरूर दिए गए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कृषि कानून में कोई कमी है। हमारी प्राथमिकता किसान का सम्मान करना है। गांव और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को रीढ़ बताते हुए उन्होंने कहा कि हर मंदी और प्रतिकूलता में भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था व खेती ने देश को मजबूती प्रदान की है।