मुंबई सहित आस-पास की कई महानगरपालिकाओं और नगर परिषद का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे विभिन्न मतदाता वर्ग को अपने-अपने पीछे गोलबंद करने की हलचल भी मंुबई और
आसपास के इलाकों मंे तेज हो गई है। विभिन्न-विभिन्न नामों से अभियानों के जरिए यह कोशिशंे भले ही उत्तर भारतीय समाज को जोड़ने के नाम पर हो रही है, परंतु इसका वास्तविक मकसद कुछ और ही लगता है। यह कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा अपना लुप्तप्राय राजनैतिक वजूद बचाने की एक्सरसाइज ज्यादा लगता है। इससे एकजुटता कम, जगह-जगह से आवाज उठने से बिखराव ज्यादा होगा, यह कहना है भाजपा विधायक और उत्तर भारतीय संघ, मंुबई अध्यक्ष आरएन सिंह का।
उन्होंने यह बात यहां जारी एक बयान मंे कही। उत्तर भारतीय समाज यहां तब से है जब से मंुबई बसना शुरू हुई थी। आज उसकी िस्थित मंुबई मंे रहने वाले देश के विविध समूहों मंे सर्व प्रमुख है। पहले से ही उसके बीच विभिन्न उद्देश्यों के साथ कई संगठन काम कर रहे हैं। सबका िसरमौर संगठन भी मौजूद है, जो सात दशक से ज्यादा समय से सक्रिय है, जिसका क्रिया-कलाप भी हर तरह से सुसिज्जत है और कुशलतापूर्वक संचालित है। अच्छा होता कि सब मिल-जुल कर ऐसे संगठन को और ऊर्जावान, शक्ति संपन्न बनाते, पर ऐसा न कर जगह-जगह से उत्तर भारतीयों का नाम लेकर उनका पुरोधा बनने के लिए मुहिम चलाना सिर्फ और सिर्फ मिथ्या प्रलाप है। समाज के पक्ष मंे आक्रामक भाषण देने से, सहयोग राशि एकित्रत करने से समाज का भला नहीं होनेवाला है। उसके लिए समाज की खातिर कुछ करना पड़ता है। उक्त अभियानों से जुड़े ज्यादातर लोग लंबे समय से सार्वजनिक जीवन से जुड़े रहे हैं। उन्हंे पहले यह सोचना चाहिए कि अपने अब्ा तक सार्वजनिक जीवन मंे उन्होंने उत्तर भारतीय समाज के हित के लिए, उनकी सहायता के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं और आगे क्या कदम उठाने वाले हैं, यह भी उन्हंे बताना चाहिए। उत्तर भारतीय समाज सिर्फ राजनैतिक हेतु से इस्तेमाल करने की कोई वस्तु नहीं है। एकजुटता का नारा देकर बिखराव की कोशिश नहीं होनी चाहिए। ऐसा समाज के लिए उचित नहीं है।