कोरोना वायरस (कोविड-19) हर उम्र के लोगों के लिए आफत बना हुआ है। खासतौर से उन लोगों पर ज्यादा मार पड़ रही है, जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं। हालांकि बच्चों में इसका जोखिम कम पाया जा रहा है। एक नए अध्ययन में इस बात की पुष्टि भी की गई है। इनसे दूसरे लोगों में कोरोना के प्रसार का जोखिम भी कम होता है। वहीं एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि कोरोना वायरस कांच और प्लास्टिक वाली सतहों की तुलना में कागज और कपड़े पर कम दिनों तक जीवित रह सकता है।
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि वयस्कों की तुलना में किशोर उम्र के बच्चों में कोरोना संक्रमण का खतरा करीब आधा पाया गया है। पूर्व के अध्ययनों में वयस्कों के मुकाबले बच्चों में कोरोना संक्रमण के लक्षणों में अंतर पाए गए थे। नए अध्ययन के अनुसार, एक निम्न अनुपात में बच्चे भी कोरोना से पीडि़त पाए गए हैं। इजरायल की हाइफा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोना के प्रति बच्चों की संवेदनशीलता को बेहतर तरीके से समझने के लिए एक मॉडल के आधार पर कोरोना टेस्ट नतीजों के डाटा का विश्लेषण किया।
ये टेस्ट गत वर्ष इजरायल में घनी आबादी वाले एक इलाके के 637 घरों में किए गए गए थे। शोधकर्ताओं ने 20 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की अपेक्षा किशोर उम्र के बच्चों को कोरोना के प्रति 43 फीसद कम संवेदनशील पाया। अध्ययन में 63 फीसद वयस्कों से कोरोना संक्रमण के प्रसार का अनुमान लगाया गया है। जबकि इनकी तुलना में बच्चों से दूसरों में कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा कम पाया गया है। पूर्व के अध्ययनों में यह बात भी सामने आ चुकी है कि बच्चों में इम्यून सिस्टम ज्यादा मजबूत होता है।
वहीं आईआईटी मुंबई के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि कांच और प्लास्टिक वाली सतहों की तुलना में कागज और कपड़े पर कोरोना कम दिनों तक जीवित रह सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना ड्रॉपलेट्स से फैलता है। ये ड्रॉपलेट्स किसी सतह पर गिरने के बाद संक्रमण के प्रसार के स्रोत का काम करती हैं। फिजिक्स ऑफ फ्लूड्स नाम की पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में प्लास्टिक, कांच, कागज और कपड़ा जैसी सतहों पर ड्रॉपलेट्स के सूखने का विश्लेषण किया गया। वायरस कांच पर चार दिन और प्लास्टिक एवं स्टेनलेस स्टील पर सात दिनों तक जीवित रह सकता है।