गणतंत्र दिवस पर राजधानी में हिंसा और अराजकता के लिए किसान नेता जिम्मेदार हैं। पुलिस को अंधेरे में रखकर दिल्ली में ट्रैक्टर लेकर घुसे किसानों ने कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई। दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टर परेड के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के साथ छह दौर की वार्ता के बाद तीन रूट तय किए थे। सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बार्डर से दिल्ली की सड़कों पर ट्रैक्टर परेड के लिए तीनों रूट भी खुद किसान संगठनों ने दिए थे, मगर किसान नेता उपद्रवियों को रोकने में नाकाम रहे। कहीं भी ऐसा दिखाई नहीं दे रहा था कि किसान संगठनों की तरफ से उपद्रवियों को रोकने के लिए कोई प्रयास किए गए हों।
पुलिस के समझाने पर भी नहीं माने किसान
किसान आंदोलन के नाम पर उपद्रव करने की बाबत दिल्ली पुलिस को लगातार पाकिस्तान की सक्रियता के साक्ष्य मिल रहे थे। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर दिल्ली पुलिस ने किसान संगठनों से हर दौर की वार्ता में यही अपील की थी कि वे केजीपी और केएमपी एक्सप्रेस वे पर ही ट्रैक्टर परेड निकालें, लेकिन किसान संगठनों ने एक नहीं मानी। नतीजा सबके सामने है। किसान न सिर्फ तय रूट से बल्कि अन्य मार्गो से भी दिल्ली में ट्रैक्टर लेकर घुसे। दिल्ली की सड़कों पर हिंसा व अराजकता को अंजाम दिया। पुलिस के समझाने पर भी किसान नहीं माने। इतना ही नहीं दिल्ली पुलिस के साथ वार्ता में किसान संगठनों ने अपनी तरफ से तीनों रूट पर ट्रैक्टर परेड में व्यवस्था बनाए रखने के लिए पांच हजार कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपने की बात कही थी, लेकिन ये कार्यकर्ता भी कहीं नजर नहीं आए। किसान संगठनों की तरफ से योगेंद्र यादव, बलदेव सिंह राजेवाल, हन्नान मौला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, दर्शनपाल, शिवकुमार शर्मा कक्का जी सहित गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी इन वार्ताओं में शामिल रहे।
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने के लिए किसान संगठनों ने दिल्ली पुलिस के साथ अलग-अलग छह दौर की वार्ता में हर बार शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने का दावा किया था, लेकिन किसान संगठन इस दावे पर खरे नहीं उतरे।
हिंसा के लिए दुखी और शर्मिंदा हूं: कक्का
मैं 70 मुकदमें झेल चुका हूं। मैं केंद्र सरकार के मुकदमें से नहीं डरता, लेकिन दिल्ली में जो कुछ हुआ उसमें संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नहीं थे। सिंघु बार्डर से जब किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली के अंदर घुस रहे थे तब पुलिस को रोकना चाहिए था। हम हिंसा के लिए दुखी हैं, शर्मिंदा हैं, लेकिन यह पुलिस की नाकामी है। दिल्ली पुलिस के साथ रूट तय करने में किसान मोर्चा के नेता शामिल नहीं थे। यह रूट जिन्होंने तय किया था, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। हम तो 15 दिन पहले ही रूट तय करने की मांग कर रहे थे, लेकिन दिल्ली पुलिस ने रूट तय करने में जानबूझकर देरी की, ताकि किसान संगठनों के हाथ में व्यवस्था न रहे।