राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 72 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किया। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, 'हमारे राष्ट्रीय त्योहारों को, सभी देशवासी, राष्ट्र-प्रेम की भावना के साथ मनाते हैं। गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व भी, हम पूरे उत्साह के साथ मनाते हुए, अपने राष्ट्रीय ध्वज तथा संविधान के प्रति सम्मान व आस्था व्यक्त करते हैं।'
कोविंद ने कहा, दिन-रात परिश्रम करते हुए कोरोना-वायरस को डी-कोड करके और बहुत कम समय में ही वैक्सीन को विकसित करके, हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी मानवता के कल्याण हेतु एक नया इतिहास रचा है। हमारे सभी किसान, जवान और वैज्ञानिक विशेष बधाई के पात्र हैं और कृतज्ञ राष्ट्र गणतन्त्र दिवस के शुभ अवसर पर इन सभी का अभिनंदन करता है। राष्ट्रपति ने कहा कि 2020 सीख देने वाला वर्ष रहा है, जो हमें मुश्किलों से कैसे उभरना है ये सीख देता है।
सियाचिन और गलवान घाटी का जिक्र
राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति कोविंद ने सियाचिन व गलवान घाटी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, माइनस 50 से 60 डिग्री तापमान में, सब कुछ जमा देने वाली सर्दी से लेकर, जैसलमर में, 50 डिग्री सेन्टीग्रेड से ऊपर के तापमान में, झुलसा देने वाली गर्मी में - धरती, आकाश और विशाल तटीय क्षेत्रों में - हमारे सेनानी भारत की सुरक्षा का दायित्व हर पल निभाते हैं। हमारे सैनिकों की बहादुरी, देशप्रेम और बलिदान पर हम सभी देशवासियों को गर्व है।
भारत में तैयार की अपनी वैक्सीन
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, आत्म-निर्भर भारत ने, कोरोना-वायरस से बचाव के लिए अपनी खुद की वैक्सीन भी बना ली है। अब विशाल पैमाने पर, टीकाकरण का जो अभियान चल रहा है वह इतिहास में अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रकल्प होगा। मैं देशवासियों से आग्रह करता हूं कि आप सब, दिशा-निर्देशों के अनुरूप, अपने स्वास्थ्य के हित में इस वैक्सीन रूपी संजीवनी का लाभ अवश्य उठाएं और इसे जरूर लगवाएं। आपका स्वास्थ्य ही आपकी उन्नति के रास्ते खोलता है।
भीमराव के पथ पर निरंतर चलने रहना है
कोविंद ने कहा, हम सबको ‘संवैधानिक नैतिकता’ के उस पथ पर निरंतर चलते रहना है, जिसका उल्लेख बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को, संविधान सभा के अपने भाषण में किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ‘संवैधानिक नैतिकता’ का अर्थ है - संविधान में निहित मूल्यों को सर्वोपरि मानना। समता, हमारे गणतंत्र के महान यज्ञ का बीज-मंत्र है। सामाजिक समता का आदर्श प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है।