भारत ई-कॉमर्स के लिए विदेशी निवेश नियमों को बदलने का विचार कर रहा है। यह एक ऐसा कदम है जिससे Amazon.com सहित अन्य प्लेयर्स पर असर पड़ सकता है। यह बदलाव से ई-कॉमर्स कंपनियों को कुछ प्रमुख विक्रेताओं के साथ अपने संबंधों को पुनर्गठित करने के लिए मजबूर कर सकता है। बदलाव की चर्चा देश के रिटेल विक्रेताओं की बढ़ रही शिकायतों के बाद आई है। यह रिटेल दुकानदार वर्षों से अमेजन और फ्लिपकार्ट पर नियमों को दरकिनार करने का आरोप लगा रहे हैं।
हालांकि ऐसे आरोपों से अमेरिकी कंपनियां इनकार करती रही हैं। भारत केवल विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को खरीदारों और विक्रेताओं को जोड़ने के लिए एक बाजार के रूप में काम करने की अनुमति देता है। यह उन्हें इन्वेंट्री की लिस्ट रखने और सीधे उन्हें अपने प्लेटफार्मों पर बेचने से रोकता है।
2018 के बदलाव से लगा था धक्का
अमेजन और फ्लिपकार्ट को आखिरी बार दिसंबर 2018 में निवेश नियम में बदलाव से धक्का लगा था। इस बदलाव से विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों की जिनमें इक्विटी हिस्सेदारी थी, उनके उत्पादों को ऑफर करने से रोक दिया था। सूत्रों ने कहा कि अब सरकार उन व्यवस्थाओं को रोकने के लिए कुछ प्रावधानों को बदलने पर विचार कर रही है। भले ही ई-कॉमर्स फर्म अपनी पैरेंट कंपनी के माध्यम से किसी सेलर्स में अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी (indirect stake) रखती हों। यह बदलाव अमेजन को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि यह भारत में अपने दो सबसे बड़े ऑनलाइन सेलर्स में अप्रत्यक्ष इक्विटी हिस्सेदारी रखती है। कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मंत्रालय के प्रवक्ता योगेश बावेजा ने कहा कि इस संबंध में कोई भी घोषणा प्रेस नोट के जरिए की जाएगी। इसमें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के नियमों से संबंधित घोषणा होगी। हालांकि उन्होंने इस बारे में ज्यादा डिटेल देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इस पर अभी काम जारी है। इस संबंध में एक महीने पहले मीटिंग की गई थी।
उन्होंने कहा कि अमेजन एक बड़ा प्लेयर है इसलिए जो भी सलाह, सजेशन या फिर रिकमंडेशन उन्होंने दिया है, उस पर भी विचार किया जाएगा। बता दें कि साल 2018 में विदेशी डायरेक्ट निवेश के कारण अमेजन और फ्लिपकार्ट को अपने बिजनेस को रिस्ट्रक्चर करना पड़ा था। इससे अमेरिका और भारत के रिश्तों पर भी एक बुरा अनुभव दिखा था। नवेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी इनवेस्ट इंडिया के मुताबिक भारत के ई-कॉमर्स रिटेल बाजार के 2026 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। 2019 में यह 30 अरब डॉलर का था। बता दें कि अमेजन और फ्लिपकार्ट की ग्रोथ की वजह से घरेलू ट्रेडर्स नाखुश हैं।