ओली जी भारत और नेपाल हमेशा राम—लक्ष्मण की तरह रहे हैं, और आप तो अकसर रामायण के बारे में बात करते रहते हैं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि लक्ष्मण जो है, ये कहने लगा है राम से कि अब मुझे भी बराबरी का दर्जा चाहिए और हम बराबरी के हिसाब से रहेंगे । और ये अचानक हुआ है । ऐसा लगता है कि जैसे नेपाल के मन में कोई बात खटक रही है । जैसे अचानक से परिवार में होता है न कि छोटे भाइ को अचानक कोई बात खटकने लगती है, कुछ अच्छा नहीं लगता । आपको ऐसा लगता है कि भारत और नेपाल के जो संबंध हैं, वो इस दौर से गुजर रहे हैं इस समय ?
(PM kp sharma oli) - देखिए, आपका क्वेश्चन भी बताता है कि इंडिया राम है और हम लक्ष्मण हैं, इसके कई अर्थ होते हैं, इंडिया भगवान है और हम उसके छोटे भाई, वो बड़ा भाई है और हम छोटे भाई हैं । मैं कहता हूँ, भूगोल में, जनसंख्या में छोटे और बड़े हो सकते हैं, मगर हम हमेशा से सार्वभौम समानता की बात करते हैं । अर्थात् हम छोटे या बड़े नहीं हैं । साइज में छोटे—बड़े हो सकते हैं मगर राष्ट्र के रूप में, ऐज अ नेशन, देश के रूप में छोटे—बड़े की फीलिंग रखेंगे, तभी बहस होती है । इस सेंटिमेंट में जरूर कुछ समस्याएँ हैं । और हम चाहते हैं कि हम दो देश, सार्वभौमसत्ता संपन्न देश, दो पड़ोसी देश, दो पड़ोसी मित्र देश जो एक रेजियन में रहते हैं, हमारे संबंधों को उसी तरह से जानना चाहिए । ये पुराना जÞमाना नहीं है, ये कोलोनियन एरा नहीं है, ये स्वाधीनता का एरा है, पारस्परिक सम्मान का एरा है । एक चीज ये है, जिसको हमें मानना चाहिए । दूसरे, हाँ डिबेट हो रहा है, डिबेट चलता है, डिबेट ही सत्य को बाहर लाता है ‘वादे वादे जायते तत्वबोधः’ बहस ना करें तो सत्य का पता लगाना भी मुश्किल हो जाएगा । इसलिए हमारा ट्रेडिशन भी है, जब दुनियाँ अंधकार में थी, त्रेता युग में जनकपुर में याज्ञवल्क्य, अष्टावक्र, गार्गी वगैरह बहुत सारे ऋषि और विदुषी शास्त्रार्थ..., शास्त्र के बारे में, दर्शन के बारे में, जीवन जगत के बारे में विवाद करते थे । तब दर्शन का अभ्युदय हुआ । दर्शन यहीं से पैदा हुआ था न ? हालाँकि यूरोपियन लोग दर्शन का, साइंस का उद्गम अरस्तु से मानते हैं । अरस्तु तो ई. पू. ६०० साल के हैं । उससे कई साल पहले उसके १५०० साल पहले यहाँ दर्शन के बारे में विचार विमर्श होता था । इसलिए बहस होना अच्छा है, बहस स्वस्थ होनी चाहिए और सत्य को पता लगाने के मकसद से होनी चाहिए ।
तो आप कह रहे हैं कि अब आप भारत को बास मानने से इनकार करते हैं, उसी पर बहस है ?
- भारत कल समझता होगा, अब भारत अपने को बास नहीं समझता । इसलिए उस पर बहस...
पर आपको लगता है कि बास नहीं समझता लेकिन बड़ा भाई समझता है ? और हमारे संस्कारों में तो हमेशा बड़े—छोटे का तो प्रेम बना रहता है । देखिए, आप ६८ साल के हैं और मोदी जी ७० साल के हैं । ऐसे भी आपके बड़े भाई हुए तो आप भी कभी भी फोन उठाके बात कर सकते हैं...?
- व्यक्तिगत तौर से वो हमसे बड़े हैं, उम्र के हिसाब से । लेकिन जब हम दो प्राइम मिनिस्टर बैठेंगे, तो दो प्राइम मिनिस्टर बैठेंगे । बड़ा प्राइम मिनिस्टर और छोटा प्राइम मिनिस्टर नहीं । दो सार्वभौम देशों के प्राइम मिनिस्टर्स बैठेंगे । वहाँ, कई देशों के प्राइम मिनिस्टर्स, प्रेसिडेंट्स बहुत छोटे उम्र के हैं अभी, बहुत छोटे उम्र के । जब हम पालिटिक्स में लगे, तब वे पैदा भी नहीं हुए थे ।
बिल्कूल
- ऐसे छोटे उम्र के हैं, फिर भी प्रेसिडेंट हैं, बड़े राष्ट्र के हों छोटे राष्ट्र के हों, प्रेसिडेंट हैं । हर प्रेसिडेंट के साथ उनका बराबरी का रिश्ता होगा, प्राइम मिनिस्टर्स का बराबरी का रिश्ता होगा । हेड आफ द गवर्मेंट के हिसाब से । इसमें मोदी जी को कोई ऐतराज नहीं है । बराबरी के हिसाब से संबंध में संबंध बनाने में उनको (मोदी जी को) कोई ऐतराज नहीं है । मगर मेरी बातों को लेकर कि मोदी जी के बराबर का प्राइम मिनिस्टर हूँ बोला, तो इस बात का बुरा मानने वाले बहुत लोग हैं, तो मैं क्या करूँ ? मैं हर आदमी की बात के पीछे तो नहीं जा सकता । मैं देशों की बात कर रहा हूँ, व्यक्ति की बात नहीं ।
इस समय नेपाल, कई बार ऐसा लगता है कि भारत और चीन के बीच में फँस गया है । एक तरफ चीन है, एक तरफ भारत है । और दोनों को खुश रखना है । और ये दोनों देश एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे हैं इस समय । तो दोनों देशों की आप के साथ ये अपेक्षा है कि आप उनके साथ रहेंगे । आपको भी कभी कूटनैतिक असहजता होती है, दोनों के बीच एक समीकरण बनाकर चलने में ?
- एक चीज है, दोनों हमारे पड़ोसी हैं और पड़ोसी को बदला नहीं जा सकता । ये आकार में, जनसंख्या में डेवलपमेंट में आगे हैं, दोनों । हमारे लिए ये खुशी की बात है कि हम अगर प्रोडक्शन कर पाए तो ये हमारे लिए बड़े बाजार हैं । और प्रोडक्शन अगर नहीं कर पाए तो हमें उनका प्रोडक्शन कंज्यूम करना पड़ेगा । हम चाहते हैं कि जो हमारी असमानता है, व्यापार में असमानता है, प्रोडक्शन में असमानता है, असंतुलन है, इस असंतुलन को मिटाना चाहिए । दो अलग-अलग पालिटिकल सिस्टम्स इकोनामिक एंड सोशल सिस्टम्स आल्सो, इसमें भी कुछ भिन्नताएँ हैं । ऐसे पड़ोसियों के बीच में हम हैं । और हम बिल्कूल संतुलित संबंध दोनों से रखना चाहते हैं । एक का कार्ड दूसरे के साथ खेलेंगे, ऐसा नहीं है, नहीं खेलेंगे । क्योंकि ऐसा करने से किसी का भी भला नहीं होगा । आप से हम कोई कार्ड प्ले करेंगे, दूसरे से दूसरा कार्ड प्ले करेंगे, तीसरे दिन पता चल जाएगा । इसलिए कार्ड प्ले करने का और छकाने का तरीका बिल्कुल छोड़ देना चाहिए । हम इस शैली में नहीं जाएँगे ।
लेकिन मैं आपको भारत के लोगों का सेंटिमेंट बताना चाहता हूँ । चीन के सााथ हमारा गलवान के ऊपर विवाद हुआ, लद्दाख के ऊपर विवाद हुआ, फिर बातचीत बंद हो गई, लगातार वो चल रहा है । जैसे ही ये सब हुआ, अचानक आपने कालापानी का स्टेटमेंट दे दिया, आपने भी नक्शा बदल दिया । और लोगों को ये लगने लगा कि ये सब कुछ एक साथ क्यों हो रहा है अचानक ? और लोगों को ये लगा, भारत के लोगों को कि नेपाल जो है, इस समय नेपाल को तो चीन के खिलाफ स्टेटमेंट देना चाहिए था जैसे कि भारत को बहुत समर्थन मिला बाकी देशों से । अमेरिका से मिला, फ्रांस से मिला बाकी लोगों से भी । जिन लोगों ने कहा कि इस तरह का वायलेशन एलएसी का नहीं होना चाहिए । लेकिन नेपाल ने नहीं दिया । बल्कि नेपाल ने कहा कि अब मुझे भी मेरी टेरीटरी चाहिए ?
- आपकी बात जरा भटकाने वाली है । बुरा मत मानिएगा । क्योंकि गलवान से हमारा लेना—देना कुछ नहीं है । आपको मैं याद दिला दूँ, दिल्ली ने आठवाँ एडिशन अपना नक्शा प्रकाशित करवाया । कश्मीर और लद्दाख की बात थी, वहीं तक सीमित रहती तो हो जाता । उसमें नेपाल की टेरीटरी को शामिल करने की कोई जÞरूरत नहीं थी । हमने उस नक्शे के ऊपर डिप्लोमेटिक नोट भेजा । वार्ता का प्रस्ताव रखा । और वार्ता के जरिए यहाँ पर मिसअंडरस्टैंडिंग नहीं होनी चाहिए, इसका समाधान किया जाना चाहिए । आप लोगों ने जो आठवाँ एडिशन (नक्शा) छपवाया, वो ठीक नहीं हुआ, ये हमने बोला । उसका कोई पाजिटिव रेस्पोंस भी नहीं हुआ । अब गलवान से हमारा क्या लेना—देना है ? आपने नक्शा ही उसी वक्त छपवाया तो हमें लिखना पड़ा कि ये नहीं करना चाहिए था ।
जी...
- और फिर रास्ता बनवाया गया...! हमारी टेरीटरी पर और उद्घाटन किया गया । हमने फिर डिप्लोमेटिक नोट लिखा, रिक्वेस्ट किया बातचीत की जाए, ये ठीक नहीं हुआ । गलवान से क्या लेना—देना है । वहाँ उद्घाटन होता है, हमने विरोध किया उद्घाटन का । भला गलवान से मिलाकर (उसी समय में) उद्घाटन क्यों किया गया ? उसी वक्त उद्घाटन करने की क्या जरूरत थी ?
आपको लगा कि...
- अब बताइए (हँसते हैं)
जी...
- गलवान से हमें क्यों जोड़ते हैं ? दूसरा, दूसरे देश का पालिटिक्स, किसी की साइड लेने का पालिटिक्स हमारा पालिटिक्स नहीं है । हमारा पालिटिक्स है ‘पालिटिक्स आफ न्यूट्रैलिटी’ । तटस्थता की हमारी नीति है । हम दोनों पड़ोसियों के बीच तटस्थ रहेंगे । वार्ता नहीं हो रही है, तो हम वार्ता शुरू करवाने की कोशिश करेंगे । दोनों मित्र हैं । हम प्रेसीडेंट शी (जिनपिंग) से भी कह सकते हैं, ली खुश्यांग से भी बात कर सकते हैं प्राइम मिनिस्टर से, वैसे ही मोदी जी से भी बात कर सकते हैं । दोनाें तरफ हमारे मित्र हैं । हम दोनों मित्रों के बीच में जो मिसअंडरस्टैंडिंग है, उसको हटाने में... और संबंधों को..., कहते भी हैं कि सबसे बड़ी ताकत क्या है ? मित्रता ।
आपको ऐसा लगता है कि आप शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी के बीच कुछ तरह की मध्यस्थता कर सकते हैं, बातचीत कर सकते हैं जिसमें आप कोई रोल निभा सकते हैं ऐज अ न्यूट्रल अंपायर ?
- हाँ आफकोर्स!
पर वो कैसे होगा ?
- हम दोनों ओर बात करेंगे कि आपलोग बातचीत पर बैठ जाइए । क्योंकि लगभग समवयस्क साथी हैं सब । एक—डेढ़ साल कोई बड़ा होगा, एक—डेढ़ साल कोई छोटा होगा, समवयस्क हैं हम । लंबे समय से हम पालिटिक्स में हैं सब ।
बिल्कुल
- इसलिए हम सिर्फ साथी जैसे ही नहीं हैं, बल्कि हम साथी ही हैं ।
पर ये सब तो तब होगा जब आप सरकार में बने रहेंगे । क्योंकि अप्रैल और मे में चुनाव होने वाले हैं । तो चुनाव के बाद आपको क्या लगता है कि आपकी दोबारा से वापसी होगी ? या इस बार कोई और आएगा ?
- आपका प्रश्न बहुत अच्छा है ? हमारी पार्टी इस बार मेजोरिटी लाएगी हमें पूरी उम्मीद है । एकदम कमजोर हालत हुई तो भी मेजर पार्टी हम ही होंगे । और इलेक्शन के बाद भी गवर्मेंट को लीड हमें ही करना पड़ेगा शायद । इसलिए मैं आश्वस्त करना चाहूँगा सब साथियों को कि इलेक्शन के बाद नेपाल—भारत संबंधों को और ऊँचाई पर पहुँचाने के लिए हम और ज्यादा कंट्रिब्यूट कर पाएँगे ।
मैं जिस सेंटिमेंट की बात कर रहा था... क्योंकि क्रिकेट तो आप देखते ही होंगे... तो भारत में लोगों को ये लग रहा था कि नेपाल एक अंपायर है और भारत और चाइना मैच खेल रहे हैं तो ये जो अंपायर है, बार बार भारत के खिलाडि़यों को ही ज्यादा आउट दे रहा है, भारत के खिलाडि़यों के लिए जल्दी उँगली उठा देता है और चीन के खिलाडि़यों के लिए थोड़ा साफ्ट है ?
- ऐसा नहीं है ।
ये एक इंप्रेशन है ?
- गलत इंप्रेशन है । ऐसा कोई एविडेंस नहीं है । हो ही नहीं सकता । क्योंकि हम हमारे दो पड़ोसी देशों के बीच में सौहार्द संबंध, समस्यारहित संबंध चाहते हैं क्योंकि..., एक चीज कहते हैं, और उसमें से आधा हम काट देंगे— हाथी अगर लड़े तो भी मैदान का नुकसान ही होगा, हाथी अगर मिल गए तो भी मैदान का नुकसान ही होगा ।
हा हा हा (हँसी)
- तो मिल गए तो भी नुकसान ही होगा’ इसको हम काट दें । हाथी अगर लड़ेंगे तो मैदान का नुकसान होगा । ये बड़े पड़ोसी लड़ने लगे तो उसका नकारात्मक असर तो हम पर पड़ेगा ही । इसलिए हम चाहते हैं कि अब एशिया का जमाना है । अपने खुद का विकास करना चाहिए । कल का विकास था दूसरों का रिसोर्स लूटकर ले जाना । दूसरों का मैनपावर, दूसरों का रिसोर्स, दूसरों की प्रापर्टी लूटकर धन कमाना । ये सब था कल का विकास माडल । आज का विकास का माडल है खुद को करना होगा विकास का काम । और खुद करने के लिए शांति चाहिए, मित्रता चाहिए, तनावरहित वातावरण होना चाहिए । तभी विकास को तीव्रता दे सकते हैं हम, गति दे सकते हैं । इसलिए अपने देश के अंदर में हो या पडोस में हो । पड़ोसी से हो या अपने अंदर हो । शांति हो तो हम विकास को गति दे सकते हैं । अगर शांति न हो तो हमें उस (शांति) पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा, खर्च करना पड़ेगा अनावश्यक, विकास का जो प्रयास है और विकास के जो रिसोर्सेस हैं, उन्हें शांति मेंटेन करने की ओर खर्च करना पड़ेगा । इसलिए वो (अशांति) हमारे लिए, विकास के प्रयासों के लिए नुकसानदेह होगा । इसलिए हम चाहते हैं कि हमारे पड़ोसियों के बीच अच्छे संबंध हों, विश्वास का वातावरण हो । भरोसेमंद मित्र बनें । क्योंकि जब एक—दूसरे पर संदेह होगा, तो बेशक साथ में सोए हों पर नींद नहीं आएगी । क्योंकि हमेशा ये लगा रहेगा कि अगर मैं सो जाऊँ तो मित्र के रूप में जो बड़ा खतरनाक आदमी साथ सोया है, सोए होने का बहाना कर रहा है, खतरा है... तो नींद नहीं आएगी ।
आपको किसके साथ अच्छी नींद आ रही है आजकल ?
- आजकल की बात नहीं है । नेपाल...
चीन या भारत ?
- नेपाल जो अस्तित्व में है, वो संतुलित नीति के साथ न्यूट्रैलिटी ... तटस्थता की नीति के साथ (चलता है) किसी का पक्ष नहीं लेना ... फिलहाल के लिए अच्छा नहीं लग सकता है, कुछ देर के लिए ऐसा लग सकता है कि हमारी साइड क्यों नहीं ली ? हमारे पक्ष में क्यों नहीं बोला ? हाँ ताकत लगाओ, हमको क्यों नहीं बोला ? हूटिंग क्यों नहीं की ? ऐसा लग सकता है फिलहाल के लिए मगर, अगर आप दीर्घ काल के नतीजे के बारे में सोचें तो हमारी न्यूट्रैलिटी..., हम किसी भी पड़ोसी के खिलाफ हमारी जमीन हमारे आकाश को इस्तेमाल करने नहीं देंगे, किसी को भी । सबके लिए ये एक प्रतिरक्षा वाल हो गया न ?
जी...
- इसलिए हम चाहते हैं हमारे पड़ोसी आराम से अपने—अपने विकास के काम में लगें, परस्पर सहयोग करें, अपने रिसर्च, वैज्ञानिक अनुसंधान, अपनी—अपनी डेवलप्ड टेक्नोलाजी शेयर करें । ये जमाना है एशिया का, अब जमाना है एशिया का जहाँ से वास्तव में सिविलाइजेशन शुरू हुआ । और ये जो हमारे दो पड़ोसी महान देश हैं, इनका गौरवपूर्ण इतिहास है । इनका भूगोल, इनका सिविलाइजेशन, इनका पापुलेशन, इनकी हिस्ट्री ग्लोरियस है । मगर यहाँ के शासकों की कमियाँ... और खास तौर पर साइंस एंड टेक्नोलाजी का शुरू में विकास हुआ, उनका हमारे खिलाफ इस्तेमाल हुआ । एशिया के खिलाफ इस्तेमाल हुआ । इंजन बना हमारे खिललाफ, स्टीमर बने हमारे खिलाफ, वीपन्स बने हमारे खिलाफ । ये तो टेक्नोलाजी का विकास था, दुनिया की मानव जाति के लिए होना चाहिए था । हम भी साथ ही साथ आगे बढ़ते । मगर साइंस एंड टेक्नोलाजी को, विज्ञान प्रविधि को हमारे खिलाफ इस्तेमाल किया गया । इसलिए भारत जैसा देश..., क्या कमी थी कि गरीब रहा ? हिमाल से हिंद महासागर तक, क्या कमी थी ? हिमाल से चोमोलोंग्मा से पैसिफिक तक क्या कमी थी चीन में ? क्या पोपुलेशन नहीं था काम करने के लिए ? ओल्ड एज पोपुलेशन था ? ऐसा नहीं था । यंग पोपुलेशन, जवान जनसंख्या, जानसांख्यिक लाभ दोनों को था । क्यों... ? इसलिए कि साइंस एंड टेक्नोलाजी का जो विकास हुआ वो इनके खिलाफ प्रयोग किया गया । और दूसरे पड़ोस के.... ऐसे ही.., हमारे यहाँ हम तो उपनिवेश कभी नहीं बने । मगर उपनिवेश नहीं बने, गरीब तो बन गए । गरीब तो रहना ही पड़ा हमको । क्योंकि उसका जो असर है, वो हम पर भी पड़ा । इसलिए, अब वो जमाना गया ।
मै जब काठमांडू आया तों मुझे ऐसालग रहा था की मै भारत में ही हुँ । मुझे ऐसा आभाष ही नहीं हुआ की मै किसी दुसरे देश आया हुँ । संस्कृति, संस्कार और भाषा सबकुछ भारत जैसा है । भारत में तो कहते है की रोटी बेटी का रिस्ता है नेपाल के साथ, आप को ऐसालगता है कभी की चीन के साथ भी ऐसारिस्ता हो सक्ता है । ये जो भारत के साथ नेपाल का विशेष रिस्ता है, ये कभी चीन के साथ भी हो सकता है रु चीन के साथ भी नेपाल के पोरस बोडर हो सकते है । कोई भी नेपाली चीन में जाके कभी भी काम कर पाए, कोई नेपाली कभी भी जाके चीन में शादी कर लें । चीन निवेश के लिए अच्छा हो सकता है । उसके पास पैसा हो सकता है । क्या आप को ऐसालगता है की भविष्य में चीन के साथ भी नेपाल का ऐसासंबन्ध हो रु या ये भारत के साथ ही सम्भाव्यता है । जो एक बार हो गया वो हो गया सायद आज ऐसाभी ना हो पाता ?
- मैने इससे पहले की अन्तरवार्ता में भी कहा था की मैं सिर्फ नेपाल के बारे में नहीं बोल रहा है हुँ । जब मैं हमारी सभ्यता, इतिहास, पूर्वजों के बारे में बात करता हुँ, हमारे ऋिषों के बारे में बात करता हुँ, संतो की बात करता हुँ । हम हिमवतखण्ड के बारे में बात करते है । हिमवतखण्ड दुनियाँ की एक एसी जगह है । ये प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य ही नहीं बल्कि यहाँ खनिजों का खद्यान भी है । हिमवतखण्ड का मौसम ही ऐसाहै जिससे यहाँ के लोग विद्ववान बन जाएंगे । मैने पहले भी कहा था की नेपाल में ३ हजार साल से पहले चिकित्सा शास्त्र का विकास हुआ था । इसका अभी भी प्रमाण है, चरक संहिता में हम देख सकते है । शल्यक्रियाका विकास हम देख सकते सुश्रुत संहिता में ३ हजार साल से पहल । बाँकी दुनिया तो अंधकार में था । हमारे पूर्वजों ने ग्रहों ग्रहों की गति, नश्रत्रों की अवस्थिती और १२ राशी की खोज की है । न्यूटन से ५ सौ साल पहले १२ वीँ सताब्दी ११५० में भाषकर आचार्य ने गुरुत्वआकर्षण बल के सिद्घान्त का पत्ता लगाया था । वृक्ष से फल जमिन पर क्यू गिरते है इसे देखकर ग्यालिलियो चकीत हो गए थे । न्यूटन को बहत खोज करना पड़ा था । क्यू की हमारे पास जो ज्ञान थी उनको विस्तार को मौका ही नहीं मिला । नालंदा क्यू जलाई गई,...! क्यूकी एक सम्रराट विमार होने के बाद बोला की हमे इससे छुटकारा पाना है लेकिन हम किसी का दबा इस्तेमाल नहीं करेंगे । धर्म के हिसाब से हम नहीं लेंगें तुम्हारा औषधी लेकिन हमे ठिक भी होना है । जिसके बाद नालंदा के प्रोफ्रेसरों ने आइडीया लगाया की उनको एक मोटी सी किताब दे दें और उनसे कहे की इस किताब के पाने पलटते रहो । दो चार दिनों तक सम्रराट ने किताब के पन्ने उल्टाए और ठिक हो गए, आश्र्चय होकर उन्होंने पुछा हम कैसे ठिक हो गए । इस के पिछे क्या राज है । प्रोफेसरों ने बताया की आप को किताब के पन्ने पल्टाते समय अपने जिव को हात से छुना पड़ा था क्यूकी किताब के पन्ने एसे नही पलटते हात को गिला करना होता है और आप किताब के पन्ने उल्टाने के लिए अपनी उंगली को जिव पर ले जा रहे थे । किताब के पंनों में दबा रखी गई थी, जिसे आप छुकर पन्ना उल्टाने के बहाने मुह में भी ले रहे थे । जिससे आप ठिक हो गए । हमारा धर्म कैसे आगे जाएगा इसको तो नस्ट करना पड़ेगा । आग लगादों इसको, ९ लाख किताबों को लाइब्रेरी में जलाया गया जहाँ ४ सालों तक आग बुझी ही नहीं थी । कहना का मतलब ये है की हमारे पुर्वज तब भी एसे थे । हमारी दबा इतना इफेक्टीव था । उसी धर्ती की बात कर रहे है । भूखण्ड की बात कर रहे है । जिसको हमे समझना चाहिए, आपने जो सबाल किए इन सब बातों में हमे उलझना नही चाहिए । आपने जो बातें की वो सारी उलझने की बाते है । सभी को ब्रोड माइंडेड होना चाहिए और इसी के साथ हमे आगे बढ़ना चाहिए । कहा पर छेद है हमे देखना नहीं है और ना हि उस छेद में उंगली करना है । छेद हमे किसी भी चिज में ढुुड़ना नहीं हा यदि सामने आता है तो फिर उसे निपटाकर आगे बढ़ना चाहिए यही हमारा तरीका है । भारतवासीयों से अपील करता हु हमारे बिच कोई असमझदारी रखने की जरुरत नहीं है, हम दो पड़ोसी देश है । आकार में भले ही छोटे बड़े है मगर देश की हैसियत से बराबर है और समता साथ ही सदभाव की भाव से हमे आगे बढ़ने की आवश्यकता है ।
पिछलें कुछ महिनों से जब हम आपको ओवजर्व कर रहे थें तों आप एक प्रधानमंत्री तों है नेता भी लेकिन आप के अन्दर हिस्ट्री का प्रोफ्रेसर भी है । एक दर्शन का प्रोफ्रेसर भी है । और हाल के दिनों में आप ने जितने भी लौजिक्स निकाले है चाहै वो कालापानी हो वों भी नक्सा का बिषय हो वों भी आप ने हिस्ट्री में से निकाला । रामायाण की बात हो वों भी आप ने माथोलोजी, हिस्ट्री से निकाला इन बिषयों को आप निकाल रहे हैं वों भी हिस्ट्री से तों कई बार हमें ये लगता है की भारत के प्रधानमंत्री या नेता को सिर्फ देश के एक प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि एक हिस्ट्री के प्रोफ्रेसर के साथ डिल करना होगा रु मुझे ऐसालगता है की हिस्ट्री पर आप के साथ वादविवाद करना पड़े सायद ।
- अगर जेएनयू इन बिषयों से संबंधीत डिबेट का आयोजन करेगी तों क्यू नहीं हम डिबेट करेंगे । भारत में बहत सारे विद्धवान है लेकिन जिस तरीके से प्रचारप्रसार उनकें विचारों, खोज और अनुसंधान का होना चाहिए वो नहीं हो पाया है । गंथें है रचनाए है, अविष्कार है हमारे पूवजों के वो कितने इनोभेटिभ थें ।
आप ने ये भी देखा होगा भारत में २०१४ के बाद जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने तब से देश में राष्ट्रवाद की एक लहर आई है, एक नयाँ माहौल बना है क्या आपको ऐसालगता है की आप के नेतृत्व में नेपाल में भी आप वहीं करने की कोशिश कर रहे है की एक देश को उसका गर्भ क्या है याद दिलाना चाहिए उसमें एक राष्ट्रवाद की भावना डालनी चाहिए । जो भारत पश्चिमी देशों के साथ कर रहा है, जो भारत चीन के साथ कर रहा है इस समय की हमें भी बराबरी का दर्जा चाहिए वहीं भारत नेपाल के साथ कर रहा हों और दुर्भाग्यवश नेपाल की नजर सब से पहले भारत पर ही पड़ गई ।
- अभी हम वर्तमान में जी रहे है । मौजूदा समय उपनिवेशवाद का नहीं है । कोलोनियालिजम समाप्त हो अब हमें उपनिवेश के अवषेशों को मन मतिष्क से हटाना है । हमे अपने देश की उत्पत्ति, देश की इतिहास और हमारे देश ने दुनियाँ को क्या दिया इस बिषय पर हम गर्व करतें हैं । गायत्री मंत्री जिसे मंत्रों का मंत्र कहा जाता है महामंत्र माना जाता है नेपाल के कोशी नदी के किनारे चतरा में कौशीक ऋिषी ने लिखा था । व्यास भी यहीं तपस्या करते थे । नेपाल एक तपोभूमी भी है । तपोभूमी क्यू क्यूकी ये ज्ञान भूमी है, ध्यानभूमी है । ध्यान का अविष्कार यही से हुआ था । योग का अविष्कार यही से हुआ था, इसलिए हमारे पास गर्व करनेवाली एसी बहत सारे बिषयवस्तु हैं ।
भारत में बहत सारे लोग इस अवधारणा को अखण्ड भारत की अवधारणा बनाकर आगे बढाने की बात करते है की अखण्ड भारत होना चाहिए आप जो बता रहे है ये जो इलाका है ये जो संस्कार है, हमारी जो इतिहास है वो सब फिर अखण्ड भारत की अवधारणा में आ जाएगा क्या आप इस बात से सहमत है ?
- नहीं.. सबाल ये है की इतिहास को कोई नहीं बदल सकता ये पिछे नहीं जाएगी । दरसल, भारतवर्ष कभी था ही नहीं । आप ने इतिहास में पढा होगा, द्वोपत का देश था, विराट का देश था जनक का देश था लगायत बहत सारे देश थें । रामायण को हम आज से ४ हजार साल पहले का मानते है लोग तो इसे ७ हजार साल पहले तो १२ हजार पहले का कहते है लेकिन मैं रामायण को ४ हजार साल का मानता हुँ । मेसोपोटामिया सभ्यता ने ४२ सौ साल पहले काठ की गाड़ी का पहिया बनाया था । उसके बाद राम के पिता दशरथ के पास १० रथ थें । अपने लिए, ४ रानीयों को के लिए और बाँकी के अपने विद्घवानों के लिए कर कुल १० रथ थें ।उनके पास दश रथ होने की बजह से उनको रशरथ नाम से बुलाया जाता था । ये ४२ सौ साल पहले की इतिहास है । मेसोपोटामिया से यहा तक आने में आप पहियाबाद तक कहेंगें, हम अयोध्यापुरी कहेंगें । लेकिन इस बिषय पर मेरा कोई पूर्वाग्रह नहीं है । और इस बात पर कोई कंफूयूजÞन नहीं होना चाहिए की हम कोई झमेला या विवाद खड़ी करने की कोशीश कर रहें है । हम तो चाहतें है की इस बिषय पर खोज किया जाए । पवित्र राम भूमि राम की जन्मभूमि असल में जो है वही पवित्र है उसी की मिट्टी शिर में लगाने से मतलब है । किसी और जगह को राम की जन्मभूमि मानकर शिर में वहा की मिट्टी लगाने का कोई अर्थ नहीं है कोई मतलब नहीं है ।
कहीं ऐसातो नहीं की डिप्लोमेसी और पोलिटिक्स में हिस्ट्रोरीकल वजर्न का इस्तेमाल कर रहे है ?
- नहीं मै आप को यही सुझाव देना चाहता था । हमारी जो इतिहास है एक भारतवर्ष, भारतवर्ष का मतलब समुचा इलाका जहाँ हजरों राज्य थें तब जाकर उसे भारतबर्ष कहा जाता था । भारतबर्ष एक ही राज्य था ऐसानहीं है । भारतबर्ष में कई राज्य थें । एकीकृत भारत के बिषय में अगर कहा जाए तो सब से पहले आपको मैं एक सुझाव देना चाहुंगा की एकीकृत भारत कब बना रु सच में इसके इतिहास को जानिए । साँस्कृतिरुप से एक होना अलग बात है । लेकिन देश कई थें । त्रेता युग में भी कई देश थें, द्घवापर युग में भी कई देश थें। विराट राजा का विराट दरवार था, हस्तीनापुर, द्घवारीका, भोपालों का राज भी था वहाँ, यधुवशींओं का राज था । मेरो कहने का मतलब ये है की एसे कई राज्य भारतबर्ष में थें । राज्य बन्तें थें टुटतें थें । वो समय एक अलग समय था । माइट इज राइट का जमाना था । जिसनें जिता जित लिया । संयुक्त राष्ट्रसंघ नहीं था कोई शान्ति सेना भी नहीं थीं । इसलिए भारतबर्ष कभी था ही नहीं । अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक की भूमी हिमवतखंड के अन्दर भारतबर्ष था । साउथ एसीया को भारतबर्ष कहा जाता था । एक क्षेत्र का नामाकरण किया गया था लेकिन इस क्षेत्र में कई राज्य समावेश थें । उसमें सिर्फ ७ या ८ देश नहीं थें कई देश थें । आप को पत्ता है ५५६ राजा, राजवाड़े भारत में थें, जब ब्रिटिस आए और सरदार पटेल को बड़ी मेहनत करनी पड़ी थी । आप को पत्ता ही होगा पंजाब की अपनी संस्कृति, भाषा, रहनसहन , खानपान है वहीं बंगाल की अलग भेषभूषा है,वहा की संस्कृति, भाषा, रहनसहन और बाध्यवादन अलग है । मेरो कहने का मतलब ये है की ये सब अलग अलग थें और अब जाकर एक हुए है तक भारत बना है । नेपाल में १२३ से अधिक भाषाभाषी है और उतनीही भाषा हम बोलते है । नेपाल एक बहुभाषीक देश है, विविधता से भरा देश है । वहीं देखिए आप यूरोप और नेपाल की बनावट अलग अलग है । जहाँ यूरोप को एक भूमी, एक भाषा, एक संस्कृति और एक देश के रुप में जाना जाता है वही नेपाल एक विधिविता से भरा देश है ।
मेरा आखिरी सबाल आप से ये है की फिर भारत और नेपाल के बिच जो एतिहासीक और साँस्कृतिक एकरुपता है, ये कैसे बना रहे इस समय इस पर आप कैसे अमल करेंगे और हाल ही में जों विवाद हुए है आप के हिसाब से कैसे सुलझ सकते है ताकि वही पुराना जमाना लौंट आए । क्यूकी उधर चीन भी विस्तारवादी सोचवाला देश बन रहा है । आप इस बिषय पर क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
- चीन को लेकर भारत की रीडींग, फिलींग एक हो सकता है । सबसे पहले तो आपने हमसे इस बिषय पर सहमति, असहमति कुछ पुछा ही नहीं इसलिए हम बताना जरुरी नहीं समझते ।
आप भारत की प्रस्पेक्टीव से सहमत है या नहीं ?
हा जहा भारत की बात है तो भारत के साथ कई भाषाएँ हमारी मिल्ती जुल्ती है । जैसे की मैं अभी हिंदी में बोल रहा हुँ । टुटीफुटी हिंदी, ये पढा हुआ हिंदी नहीं है एसे ही बोल लिया । नेपाल में बहत सारे लोग हिंदी ही नहीं बल्कि नेपाली भी नहीं समझते । और एक चिज आपको समझना होगा की हमारा पर्सेपसन क्या है रु नेपाल की कोशी, कार्णाली और कालीगण्डकी नदी है जो भारत में जाकर मिल्ती है । नदी में जो मछलीयाँ है क्या उन्हें बोर्डर का मतलब पत्ता है ? बोर्डर पतानी चै चल्ता । नेपाल के पंक्षीयों को बोर्डर का मतलब पत्ता है? नहीं पत्ता है !
पर उनको नयाँ नक्सा दिखाना पड़ेगा ?
- नक्सा पंक्षयाँ या फिर मछलीयों को दिखाने की जरुरत नहीं है । नक्सा हम आप को देखने की जरुरत है । हमे सच्चाइँ को कबुल करना ही होगा । तथ्यों को माने, प्रमाणों को माने और भावनाओं को समझने की कोशीस करें । सच्चाइँ पर आधारीत, तथ्यों पर आधारीत, प्रमाणों पर आधारीत भावनाओं को समझना चाहिए । और हाँ ‘क्या भारत ने अपना नक्सा नहीं छापा है रु सभी देश अपना अपना नक्सा निकाल्तें है, छापते है और अपनी भूमीको समेटकर छापतें है । विवादरहीत नक्सा तो नहीं छापतें । पाकिस्तान के साथ आपका विवाद होनेके बाद भी भारत अपना नक्सा छापता है वो भी अपनी भूमी को समेटकर उधर पाकिस्तान भी जिसे अपनी भूमी मानता है उसे समेटकर देश का नक्सा साझा करता है । जिस दिन इन विवदों का समाधान हो जाएगा उस दिन दोनों ही देशों का एक ही प्रकार का नक्सा होगा लेकिन उसमें बोर्डर समावेश किया जाएगा ।
अगर चीन ने ऐसा किया होता तो चीन के साथ भी ऐसा ही करतें ?
- मैं आपको ये बताना चाहता हुँ की हम सार्वभौमीकता, भूमी अखण्डता के सबाल में किसी के साथ समझौता नहीं करतें । किसी देश से कम या फिर किसी से ज्यादा व्यवहार नहीं करते । किसी ने गलत किया फिर भी ठिक है या नहीं किया फिर भी ठिक है ऐसानहीं करतें हम सभी के साथ समान व्यवहार करते है ।
नेपाल के PM kp sharma oli द्वारा zee news को लिया इंटरव्यू का संपादित अंश...