संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए (यूपीए) के अध्यक्ष पद के लिए शिवेसना ने शरद पवार का समर्थन किया है। शिवसेना के इस तरह इशारों ही इशारों में शरद पवार का नाम लेने के बाद से राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं को बाजार गरम हो गया है। बता दें कि अगले साल जनवरी में सोनिया गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटने वाली हैं। ऐसे में कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा, इसकी चर्चा जोरों पर है। शिवसेना के बयान के बाद जिस तरह की राजनीतिक हलचल तेज हुई है, उसे देखते हुए अब खुद शरद पवार से इससे किनारा कर लिया है। शरद पवार ने तो यहां तक कह दिया कि यूपीए अध्यक्ष पद में मेरी बिल्कुल दिलचस्पी नहीं है, मेरे नाम से अनावश्यक तौर पर विवाद न छेड़ा जाए।
एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने शिवसेना के बयान से किनारा करते हुए कहा कि उनका नाम लेकर विवाद नहीं छेड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा शिवसेना ने जो कुछ भी कहा है, वह उनका मत है, मेरा नहीं। सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी ने पद पर बने रहने की अनिच्छा जाहिर की है। सोनिया का मानना है कि इस पद के लिए उपयुक्त नेता जल्द ही मिल जाएगा। अब माना जा रहा है कि शरद पवार यूपीए अध्यक्ष पद के सबसे मजबूत प्रत्याशी हैं। गौरतलब है कि इसी मुद्दे पर शिवेसना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में भी पवार के यूपीए अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत की गई है। यूपीए की तुलना एनजीओ से करते हुए सामना के संपादकीय में कहा गया है कि कांग्रेस के नेतृत्व में एक ‘यूपीए’ नामक राजनीतिक संगठन है। उस यूपीए की हालत एकाध ‘एनजीओ’ की तरह होती दिख रही है। यूपीए के सहयोगी दलों द्वारा भी देशांतर्गत किसानों के असंतोष को गंभीरता से लिया हुआ नहीं दिखता। यूपीए में कुछ दल होने चाहिए, लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है।