मीठी नदी को गहरा और चौड़ा करने का प्रस्ताव अभी दो दिन पूर्व ही मंजूर किया गया था। जबकि यही प्रस्ताव पंद्रह दिन पहले शिवसेना ने रद्द कर दिया था। मनपा गलियारों में अब इस बात को लेकर चर्चा है कि अभी तक मनपा की स्थाई समिति में अंडरस्टैंडिंग होती थी, अब मंत्रालय में भी अंडरस्टैंडिंग हुई है क्या। स्थाई समिति में किसी प्रस्ताव को रद्द करने के बाद उसे तीन महीने तक दोबारा समिति में लाना ही नियम के खिलाफ होने की बात कांग्रेस नगरसेवक दबे मन से कहते हुए शिवसेना के इस रवैये पर नाराजगी जता रहे हैं।
मीठी नदी को चौड़ा करने और गहरा करने सहित दूषित पानी को ट्रीट करने का 569 करोड़ का प्रस्ताव स्थाई समिति में अक्टूबर महीने में लाया गया था। मनपा स्थाई समिति अध्यक्ष यशवंत जाधव ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। मीठी नदी के प्रस्ताव को रद्द करने पर ही सभी पार्टियों के नेता अचंभित रह गए थे। अभी पन्द्रह दिन भी नही बीता की मीठी नदी को चौडा करने का प्रस्ताव वापस स्थाई समिति में लाया गया जबकि मनपा नियमानुसार कोई भी प्रस्ताव रद्द करने के बाद तीन महीने तक दोबारा नहीं लाया जा सकता है. इसके बावजूद पन्द्रह दिन में दोबारा प्रस्ताव लाने पर कांग्रेस नेताओ ने आक्षेप लगाया। महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल होने के कारण कांग्रेस शिवसेना के खिलाफ खुलकर नही बोल पा रही है लेकिन शिवसेना पर आरोप लगा रही है कि मनपा का कामकाज भी अब मंत्रालय से चलेगा क्या। बताया जा रहा है कि पहले कांग्रेस नेता के ठेकेदार ने यह ठेका लेने की लेकर तैयारी की थी, तब नेता मंत्री नही था। मनपा ने कांग्रेस के नेता का ठेका होने के कारण प्रस्ताव रद्द किया था, लेकिन अब वही कांग्रेस नेता मंत्री बन गया है और शिवसेना पर दबावबनाकर मनपा स्थाई समिति को प्रस्ताव मंजूर करने के लिए बाध्य किया। इससे मनपा के शिवसेना नेताओ में और नाराजगी व्याप्त हो गयी है। कॉंग्रेस मंत्री का मंत्रालय से मनपा के काम काज पर हो रहे दबाव को लेकर शिवसेना नेता भीनाराज बताए जा रहे है।
कांग्रेस के नगरसेवक भी नाराज
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस मंत्री का मनपा के कामकाजों पर हो रहे हस्तक्षेप को लेकर कांग्रेस के नगरसेवक भी नाराज बताए जा रहे है।मंत्री का आदेश आने के बाद नगरसेवक अब अपने आकाओं के पास मंत्री की मनपा के कामकाजों में दखलंदाजी को लेकर शिकायत कर रहे है। कांग्रेसी नगरसेवकों का आरोप है कि मंत्री का हर काम मे हस्तक्षेप हो रहा है। वरिष्ठ नेताओं का नगरसेवकों को निर्देश आया है कि मंत्री की मत सुनो, अपने अनुसार ही काम करो।