औपचारिक वित्तीय या बैंकिंग सेवाओं से दूर रहने के कारण लाखों भारतीय परिवार गरीबी के चक्र में फंसे रह जाते हैं। लोग अपनी जमा पूंजी को असुरक्षित माध्यमों में रखते हैं जो कि अक्सर डूब जाती है। गरीब लोग मित्रों और रिश्तेदारों को पैसे भेजने के लिए अनौपचारिक माध्यमों का सहारा लेते हैं और जब मुश्किल पड़ती है तो पैसे के लिए महाजनों या आर्थिक बिचैलियों का रुख कर उनके चंगुल में फंस जाते हैं।
इसीलिए लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त 2014 को विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाइ) की घोषणा कर 28 अगस्त से संपूर्ण देश में अभियान शुरू कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप आज करोड़ों परिवार बैंक सेवाओं से जुड़ गए फिर भी अभी 20 प्रतिशत से अधिक वयस्कों के पास बैंक खाते नहीं हैं और जिन लोगों ने खाते खोले भी हैं उनमें से भी कुछ बंद हो गये और लगभग 19 प्रतिशत खाते निष्कृय हैं।
विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट (फिंडेक्स-2018) में कहा है कि वर्ष 2014 में देश में केवल 53 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक खाते थे, जो बढ़ कर 2017 में 80 प्रतिशत तक पहुंच गए। चीन में भी 80 प्रतिशत लोगों के पास ही बैंक खाते हैं।
विश्व बैंक ने प्रधानमंत्री जनधन योजना के माध्यम से वित्तीय समावेशन में आई तेजी का उल्लेख करते हुए फिंडेक्स रिपोर्ट में कहा है कि 2011 में देश में केवल 35 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक खाते थे जो कि 2017 तक 80 प्रतिशत तक पहुंच गये। मोदी जी की इस महत्वाकांक्षी योजना में बायोमीट्रिक पहचान के उपयोग से वित्तीय सेवाओं की पहुंच बढ़ाने में सहायता मिली है।