भारतीय सेना (Indian army) हर साल लगभग 1300 गोरखा जवानों की भर्ती करती है. दूसरी ओर ब्रिटिश आर्मी में भी गोरखाओं की नियुक्ति होती है. वे सालाना 200 गोरखा जवानों की भर्ती अपनी आर्मी में करते हैं. अब नेपाल उस संधि का विरोध कर रहा है, जिसके तहत ये भर्तियां होती हैं. उसके मुताबिक इस संधि के कारण नेपाल को कई बड़े नुकसान हो रहे हैं. अब वो सैनिकों के चयन और यहां तक कि सीमा पर उनकी तैनाती में भी अपनी भूमिका चाहता है.
हाल में हुई विरोध की शुरुआत
हाल के दिनों में भारत और नेपाल के बीच तनाव गहराया है. उसने भारत के तीन क्षेत्रों पर अपना दावा किया. माना जा रहा है कि उसने चीन के दबाव में आकर किया. चूंकि चीन उनके यहां भारी इनवेस्टमेंट कर रहा है इसलिए वहां की आंतरिक राजनीति भी चीन की पकड़ में है. बात जो भी हो, लेकिन अब नेपाल इंडियन आर्मी में गोरखाओं की नियुक्ति का भी विरोध कर रहा है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने इंडियन आर्मी में गोरखा सैनिकों की भर्ती की समीक्षा की बात की.
क्या है दोनों देशों के बीच संधि
जुलाई में ग्यावली ने नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन्स से बात करते हुए कहा कि ये समझौता अतीत की विरासत है. लेकिन वर्तमान में किसी का नहीं रहा. असल में अंग्रेजों के जाने के बाद साल 1950 में 30 जुलाई को भारत, ब्रिटेन और नेपाल के बीच शांति, मैत्री और व्यापार त्रि-पक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इसके तहत दोनों देशों ने अपने अलावा दूसरे देश के नागरिकों को भी लगभग समान अधिकार दिए. यहां तक बिना वीजा आवाजाही और नौकरी भी की जा सकती है.