उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या साठ हजार से ज्यादा हो गई है और अब तक कोरोना संक्रमण से 13 सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. खबर लिखे जाते समय यह भी पता चला कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं और अब उन्होंने खुद को क्वारंटीन कर लिया है. उनसे पहले राज्य के पांच मंत्री कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे और सचिवालय से लेकर कोई ऐसा विभाग नहीं बचा है जहां संक्रमण ना पहुंच चुका हो.
उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं वैसे भी कोई बहुत अच्छी नहीं हैं लेकिन कोरोना संक्रमण की रफ्तार बढ़ते ही राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमर कसी, 11 काबिल अफसरों की टीम बनाई और खुद सारी तैयारियों की देख-रेख शुरू की.
निजी अस्पतालों में बेहतर इंतजाम लेकिन वहां जाना सबके वश का नहीं.
करीब दो महीने पहले सरकार ने घोषणा की कि अब उसके पास राज्य भर के अलग-अलग अस्पतालों में एक लाख कोविड बेड हैं जहां कोरोना मरीजों के इलाज की हर संभव सुविधा मौजूद है. इसके अलावा सरकार ने वेंटिलेटर, डॉक्टरों-नर्सों की संख्या, उनकी सुविधाएं बढ़ाने जैसी तमाम घोषणाएं कीं और उन्हें जमीन पर उतारने की भी कोशिश की.
लेकिन एक लाख कोरोना स्पेशल बेड होने के बावजूद राजधानी लखनऊ समेत राज्य भर में जिस तरह से अस्पतालों के बाहर मरीजों की लाइन लगी है, जगह-जगह मरीज इलाज और जांच के लिए भटक रहे हैं, उसे देखते हुए इस दावे पर सवाल खड़े होते हैं क्योंकि राज्य में अभी कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या महज साठ हजार ही है.
उस वक्त सरकार ने दावा किया था कि राज्य के सभी 75 जिलों में L1, L2 लेवल के अस्पताल पूरी तरह तैयार हैं. सरकार का दावा है कि प्रदेश में लेवल 3 के भी 25 अस्पताल तैयार किए गए हैं और लखनऊ में अलग से दो सौ बेड का कोविड अस्पताल बनाया गया है.
राज्य के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद का कहना है कि लेवल 1 के अस्पतालों में सामान्य बेड के अलावा ऑक्सीजन की भी व्यवस्था है, लेवल 2 के अस्पतालों में बेड पर ऑक्सीजन के साथ कुछ में वेंटिलेटर की भी व्यवस्था है जबकि लेवल 3 के अस्पतालों में वेंटिलेटर, आईसीयू और डायलिसिस जैसी व्यवस्थाओं के साथ गंभीर मरीजों के लिए हर तरह की अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं.
इसके अलावा सरकार ने मरीजों की देख-रेख, टेस्टिंग इत्यादि पर निगरानी के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए हैं. जिलों के जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्साधिकारी तो इसके लिए जवाबदेह हैं ही. लेकिन स्थिति यह है कि राज्य में नोडल अधिकारी समेत कोई अधिकारी ना तो फोन पर उपलब्ध होता है और यदि हो भी गया तो उसके लिए किसी की समस्या के समाधान का रास्ता नहीं होता है.
शारदा अस्पताल, ग्रेटर नोएडा
लखनऊ स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और कोरोना वॉर्ड के इंचार्ज डॉक्टर विक्रम कहते हैं कि कोरोना के सभी संदिग्धों को आइसोलेशन या फिर अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं होती है. वो कहते हैं, "सभी लोगों को अस्पताल के ही आइसोलेशन वॉर्ड में रखने की ज़रूरत नहीं होती. बल्कि जो संदिग्ध होते हैं उन्हें घर में ही दो हफ्ते के आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जाती है लेकिन यदि रोग के लक्षण दिखते हैं तो उन्हें अस्पताल में डॉक्टरों और विशेषज्ञों की देख-रेख में रखा जाता है. जहां तक अस्पतालों में आइसोलेशन बेड की बात है और सुरक्षात्मक उपकरणों की बात है, तो अब उसकी कमी नहीं है."
लखनऊ में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के अलावा राम मनोहर लोहिया अस्पताल और पीजीआई में भी कोरोना मरीजों के लिए आइसोलेशन बेड बनाए गए हैं. सरकार का दावा है कि टेस्टिंग की सुविधा भी अब कई जगह दी जा रही है और संख्या भी काफी बढ़ाई गई है लेकिन अस्पतालों के बाहर लोगों की भीड़ और उनकी शिकायतों को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि सब कुछ ठीक-ठाक है या फिर सरकार ने दूरदृष्टि के साथ कोई तैयारी की हो.
वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा कहते हैं, "लॉकडाउन काल का सदुपयोग सरकार को अस्पताल क्षमता, सुविधाओं इत्यादि को बढ़ाने में करना चाहिए था लेकिन वह प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और अपनी छवि चमकाने की कोशिशों में लगी रही. जमीन पर उसने देखने और जानने की कोशिश ही नहीं की कि समस्या कितनी गंभीर हो सकती है और उसके लिए हमारी तैयारी कितनी है. राजधानी लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद में यदि हालात ऐसे हैं तो दूर-दराज और छोटे शहरों का क्या हाल होगा, यह समझा जा सकता है.”
कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर की बात करें तो पहले केस के वक्त यूपी के 36 जनपदों में वेंटिलेटर नहीं थे. राज्य भर में महज 250 वेंटिलेटर थे. हालांकि उसके बाद वेंटिलेटर्स की संख्या को दस हजार तक बढ़ाने का सरकार ने लक्ष्य रखा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर हर जनपद में पर्याप्त वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए. यही नहीं, लॉकडाउन के दौरान नोएडा में वेंटिलेटर निर्माण की यूनिट भी शुरू की गई ताकि महंगे वेंटिलेटर खरीदने के बजाय सस्ते और पोर्टेबल वेंटिलेटर बनाए जा सकें.
लेकिन कोविड अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि वेंटिलेटर की बजाय अस्पतालों के दूसरी आधारभूत चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए था. लखनऊ के एक निजी अस्पताल के डॉक्टर संजीव लाल कहते हैं, "वेंटिलेटर की जरूरत बहुत कम मरीजों को पड़ती है लेकिन सरकार ने शुरू से ही इस पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया. स्थिति यह है कि कई अस्पतालों में वेंटिलेटर तो आकर रखे हुए हैं लेकिन उन्हें इंस्टाल नहीं किया जा सका है और वो रखे-रखे बेकार हो रहे हैं. उनकी बजाया अस्पतालों और वहां बिस्तरों की संख्या बढ़ाई गई होती तो कहीं ज्यादा अच्छा होता.”
अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती संख्या और वहां होने वाली असुविधा को देखते हुए यूपी सरकार ने अब एसिम्प्टोमेटिक कोरोना पॉजिटिव मरीजों को घर में ही क्वारंटीन रहने की इजाजत दे दी है और कुछ होटलों में भी अपने पैसे पर क्वारंटीन रहने या फिर इलाज कराने की छूट दे दी है लेकिन इन सबके बाद मरीजों की संख्या में ना तो कमी आ रही है और ना ही सरकारी सुविधाओं में खामियों की कमी हो रही है.
देश में जन-स्वास्थ्य सुविधाओं पर नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य इनमें सबसे पीछे हैं. नीति आयोग की इस सूची में केरल पहले स्थान पर है. देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल, महामारी के इस दौर में सरकार और अधिकारियों के लिए बेहद चुनौती भरा है.