हम सिर्फ याद रखसकते हैं

कविता

बहुरुपी हम याद ही तो रखसकते हैं

छुपके कहीं मनोबादमे बहसकते हैं ।

हम ‘आजाद’ भी कहसकते हैं ।

कई दिलाशाके ललिपपमे बे-उन्माद मरसकते हैं ।

अस्त्र गुमाके वस्त्रहीन बादशाहकी बिगुल

शंखनाद करसकते हैं ।

मुट्ठी सास,प्यालाभर भोजनके सहारे उनका भजन गाके

छातीमे कोई ‘बाद’ (Principles) औ सपनेमे चांद चखसकते हैं ।

पैदायसी पारालाइज्ड, बिना रिडके हड्डीका हम रिआया (commonman)

सिर्फ याद रखसकते हैं ।

***

हाँ सिर्फ याद ही रखसकते हैं

‘प्रजा’ हम! कोई चारा (Prey) मे पिगलते हैं, कोई आहाराबिना ढलते हैं ।

कभी, इनके बल्छी, कभी, इनके हुक्केमे तड़प तड़पके जलतेहैं ।

जलते जलते देदेना तक्मा

देदेना ‘शहिद’ कि इनाम !

वाह हम ‘प्रजा’! खुशीखुशी खोदतेहैं खुदको खोनेका खाडल

ये धूमिल अस्तित्वकी बादल! हाय!

मुहं होकर भी गुंगे, आँख होकर भी अन्धे !

मगज होकरभी विवेकशुन्य !

वाह! हम ‘प्रजा’! हमारी नाच, उनकी बाजा ।

ये सिर्फ हम-तुम ही कर सकते हैं ।

उसके आसन बनानेके लिए हम ही मरसकते हैं ।

हम, बिना पुंछकी जानवर, पाईतालानीचेकी चिट्टी ।

मृत्युसय्यासे एक चिनी-दाना चखसकते हैं

रिडकी हड्डी बिनाके हम सिर्फ याद रखसकते हैं ।

***

हाँ याद रख सकते हैं

क्युं कि ये आदत बनी उनका करका कवाज नाचना ।

ये चाहत बनी उनका अर्डरका आवाज बांचना ।

आदमी नही हम, हैं हम सिर्फ शिरकटा कबंध (headlessbody)

लाल-पलकी पलककी ललिपपकी खोटा (meaningless) निबन्ध ।

हमारी सम्बाद, उनकी कुर्सी की स्वाद!

हम स्थुल नि:शब्द, खडे एटलस!

कंधे पे किसीका घडा, कंधे पे बाबुसाहब बडा!

ये फिजुल गर्वका अखाडा

या गतिहीन जिन्दगीका बयल गाडा !

मतिहीन एक स्पेसिजका नगाड़ा (Drum) !

मिलके करते हैं बाबुसाहेबका किर्तन,

खिलके करते हैं इबादत भजन !

क्युं कि हम बिना पुंछ की जानवर ।

उनकी गानमे नाचने तरसते हैं

खुद शिर नही उठासकते हैं, पयरपे किसीका हाथ चाहिए

खुद पयर नही बढासकते हैं,शिरपे किसीका हाथ चाहिए ।

चाहे बेचनापडें इमान-जमान, बेच देते हैं

चाहे रेट्ना पडें दिलकी कमान, रेट देतें हैं

आहत दिलकी आहटको समबेदनाकी भेट देते हैं

हाय! बिन इबादत, बिन इजाजत !

ये जिन्दगीकी हे क्या जमानत !

येअस्तित्वका कैसा अमानत !

बोलते- पर शब्द किसीका फरमान होगा

देखते- पर नजर किसीका अरमान होगा 

हम बस्, साबुनपानीका बुलबुला 

या हैं कोई मक्की-खेतका पुतला !

किसीका फुंकसे बनते हैं, उड़ते हैं, खोक्ला गोला बनके पलभरमे फटते हैं

किसीका लेपसे पनपते हैं, निसास निर्जीव एक युग कटते हैं

या होते हैं सास लेताहुवा मिट्टीका कुरूप बिम्ब

या पार्थिब सरिरमे किसी दुसरे का प्रतिबिम्ब

जिन्दा जताने चायकी चुस्कीमे किस्सा बकसकते है

पर बुलबुला ही तो है, चायकी बाद ही फटसकते है

उनके आदेशमे पलभरमे ‘एक से दो’ बंट सकते है

बेजुवान हम, सिर्फ याद रखसकते हैं

***

हांजी हम सिर्फ याद रख सकते हैं

मनवाद, धनवाद, गनवाद, सब वादका राख खाक साख चखसकते हैं

हम हमारे नही उनके हैं,

ये आजाद-दास दासता, उनकी आश्वासन की गुनके हैं

यहाँ प्रणामको निन्दा बोलते हैं

पुतलाको जिन्दा बोलते हैं

पिंजरे बन्दको परिन्दा बोलते हैं

ये पुतला उनकी मर्जी, कभी खोलते हैं कभी काँटामे तोलते हैं

बता दो ना हमारी केजी अंगका भाउ !

या बता दो दासताकी घाउ !

या उनकी मालिस पाउकी जुलुसकी दाउ !

बोलदो बाबुसाहब, कितना है मेरा मोल

कितने हैं आपकी अनमोल बोल!

और कितने हैं मेरे आँशु के मोल !

बोल ए पत्थर बोल !

हे दैवी न्याय, बस् एक बार दरबाजा खोल !

पर नहीं !

निन्दासे शर्मिंदा होके प्रशान्त सुखगया

तापकी रापसे जीवनकी भुख गया

कुछ राजा, हम रङ्क,

एक मरे हत्या, बहुत मरे तथ्यांङ्क

उनकीमौनता भी उनकी ताकत, जीत बनताहै

हम फगत, हमारी आवाज-आँशु सिर्फ गीत बनताहै !

क्युं की सिलाया हुवा मुहं और पलके झुकाके

हम सिर्फ उनका ‘हजुर’ और ‘जय’ बकसकते हैं

पसिना, लाठी, बम, बूट सब चखसकते हैं

बिना रिडके हड्डीके हम रिआया

सिर्फ याद रख सकते हैं ।

सिर्फ याद रख सकते हैं ।।


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प्रकाशित तारीख : 2020-07-17 17:34:00

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