नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल सरकार से पुछा, नेपाल कामगारों के लिए क्या भारत विदेश नहीं है? नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने केपी शर्मा ओली सरकार को भारत में काम कर रहे नेपालियों को लेकर "कारण बताओ नोटिस" जारी किया है। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने ओली सरकार से पुछा है कि भारत में काम कर रहे नेपाली नागरिकों को विदेशी रोजगार कि श्रेणी में क्यों नहीं रखा गया है ? उन्हें दुनियाँ के बाकी देशों में काम कर रहे प्रवासी नागरिकों से अलग क्यों रखा गया है? दरअसल, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पेटिशन पर सुनवाई चल रही है।
फोरम फोर नेशन बिल्डिङ्ग नेपाल कि तरफ से निर्मल कुमार उप्रेती और दीपकराज जोशी ने याचिका दाखिल कर भारत में काम कर रहे प्रवासी नेपालियों के दयनीय दर्जे को लेकर बहुउद्देश्यीय सवाल उठाया है। उप्रेती ने नेपाल के प्रमुख अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा, "फोरेन (Foreign) एम्प्लोयमेन्ट ऐक्ट, 2007 साफ तौर पर कहता है कि चाहे देश का कोई भी हो, विदेश में काम करने जानेवाला हर नेपाली नागरिक प्रवासी कामगार है। लेकिन भारत में नौकरी या काम कर रहे नेपालियों को विदेशी रोजगार में कभी नहीं देखा गया।
नेपाल सरकार उन प्रवासी नागरिकों का कोई रिकाँर्ड नहीं रखती है जो भारत में काम करते हुए अपना जिविकापार्जन करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नेपाल से रोजगारी के सिलसिले में आए हुए करिब ४०/४५ लाख नेपाली मजदुर हैं। याचिकाकर्ता ने कहा, "विदेशों में काम कर रहे प्रवासी नेपाली नागरिकों में सबसे ज्यादा लोग भारत में ही क्यों श्रम करते हैं ? कहीं सन् 1950 जुलाई 31 का भारत नेपाल मैत्री संधि (Indo - Nepal treaty of peace & friendship) तो नहीं जिसमे दोनों भी देश के नागरिक बेरोक-टोक मुवमेन्ट, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आ-जा सकते हैं।
दोनों भी देश कि सीमाऐं एक दुसरे के लिए खुली हुई हैं। जहाँ किसी तीसरे देश में काम करने के लिए नेपालियों को लेबर परमिट के लिए आवेदन करना पडता है। वहीं भारत में काम करने के लिए ऐसे किसी भी परमिट कि जरुरत नहीं पडती है। इससे माइग्रेशन से पहले वे इन्स्योरेन्स जैसी सुविधाऐं भी नहीं ले पाते हैं। अथवा वन्चित रहते हैं ऐसा कह सकते हैं।
नेपाल में विदेश जाने से पहले किसी भी कामगार को माईग्रेट वर्कर्स वेलफेयर फन्ड में योगदान देना पडता है। और इन्स्योरेन्स खरीदना पडता है। विदेश में मरने, घायल होने या गम्भीर रुप से बीमार पडने पर उन्हें नेपाल कि सरकार से आर्थिक मदद दी जाती है। लेकिन भारत के मामले में ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता है। नेपाली मजदुर भारत में करीब दो सदियों से काम कर रहें हैं।
सन् 1815 में ईस्ट ईन्डिया कंपनी ने नेपाली गोरखाओं कि सेना में भर्ती कि थी। आज भी भारतीय सेना में नेपालीयों कि भर्ती कि जाती है। जिसे भारत सरकार गर्व से "गोर्खा रेजिमेन्ट" कहते हैं। भारत स्वतन्त्र के समय अंग्रेज़ सरकार ने नेपाली गोर्खा रेजिमेन्ट कि भारत सरकार से हिस्सेदारी करते हुए एक टुकडी बेलायत में महाराणी कि सुरक्षा के लिए ले गई थी। जो आज भी महाराणी एलिझाबेथ द्वितीय कि सुरक्षागार्ड में कार्यरत हैं।
बता दें कि 1950 में भारत नेपाल शांंति और मैत्री संधि (Indo - Nepal treaty of peace & friendship) पर 31 जुलाई को हस्ताक्षर किये थे। जिसके तहत भारत नेपाल के लोगों को एक-दुसरे कि सीमाऐं में आसानी से मुवमेन्ट कि आजादी है। इसी छुट कि वजह से नेपाली जनता आसानी से भारत में रोजगार पा सकते हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में नेपाल को भारत से १२८.५ अरब रुपए रेमिटेन्स (भारत में काम कर रहे नेपाली मजदुर भारतिय बँक द्वारा अपने गाउँ घर भेजे हुए रकम का वित्तीय आमदानी रकम) के तौर पर मिला था।
यह नेपाल को किसी भी देश से हासिल होनेवाले रेमिटेन्स में सबसे ज्यादा है। हालाकी, याचिकाकर्ता उप्रेती ने कहा, मैत्री संधि में दोनों देशों के लोगों को बिना किसी पासपोर्ट के एक- दुसरे कि सीमा में आवाजाही कि इजाजत दी गई है। लेकिन भारत फिर भी विदेश ही है। इसलिए भारत में काम करने के लिए जा रहे नागरिकों को भी विदेशी रोजगार के तहत ही रखा जाना चाहिए। उप्रेती ने कहा "नेपाल कि सरकार भारत से आनेवाले रेमिटेन्स का इस्तेमाल तो कर रही है लेकिन वहाँ काम कर रहे लोगों को माइग्रेट वर्कर्स नहीं मान रही है। दु:खद यह है कि भारत में नेपाली दूतावास में एक लेबर डिपार्टमेन्ट तक नहीं है।"
रिट पेटिशन से उप्रेती एवम् जोशी ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में जो लेबर के विषय में पेशकस कि हुई है काबिले तारिफ है। किन्तु प्रश्न यहाँ पर उठ रहा है कि जो प्रवासी नेपाली जो कई दशकों से भारत के विभिन्न राज्य में स्थाई रुप से रहते हैं। भारत सरकार के सभी दस्तावेज राशन कार्ड, आधार कार्ड, चुनाव परिचय-पत्र, पेन कार्ड सहित तमाम सरकारी दस्तावेज बनाये हुए हैं क्या वे लोग वह लोगों को आप भारत में विदेशी कहेंगे? आपके तथ्यांकअनुसार करीब 40/45 लाख में से लगभग 35/40 लाख हए सुविधा सहित भारत में बसते हैं।
भारत सरकार के लेबर इन्स्योरेन्स के तहत दुर्घटना बीमा, जीवन निधि मेडिकल सुविधा, भविष्य निधि सहित मजदुर हकहित भारतियों के समान दिया गया है। फोरेन एम्प्लोयमेन्ट ऐक्ट 2007 में नेपाल से आनेवाले अस्थाई प्रवासी नेपाली लेबरों के लिये नेपाल भारत सरकार ने अवश्य ही संधि अनुसार लेबर ऐक्ट 2007 अमल में लाना चाहिए।
नेपाल सरकार ने भी प्रवासी मजदुरों के रेमिटेन्स से नेपाल कि वित्तीय आर्थिक जरुरतों को पूरा करती है। किन्तु प्रवास में नेपाल सरकार का सहयोग नगण्य होता है। यहाँ तक कि दिल्ली स्थित दूतावास सिर्फ नाम के लिये खोला हुआ सरकारी दफ्तर कह सकते हैं। दिल्ली दूतावास में कार्यरत कर्मचारी लेबर एम्प्लोयमेन्ट ऐक्ट के करार अनुसार हैं...?