चीन कोई फन्ने खां नहीं है। न ही उसकी सेना के पास किसी बड़े युद्ध का अनुभव है। 15 जून को हमारे 20 जवानों ने अपने जीवन की आहूति देकर पूरी दुनिया के सामने चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पी.एल.ए.) की पोल खोलकर रख दी है। पी.एल.ए. कोई रणनीतिक सेना नहीं है, वह सिर्फ एक राजनीतिक सेना है, जिसका इस्तेमाल चीन ज्यादातर अपने ही लोगों पर अत्याचार के लिए करता है। एक ओर तो वह अमरीका से भी लडऩा चाहता है मगर गलवान में भारतीय सैनिकों से ही बुरी तरह मात खा गया। यह मात उसके लिए एक बड़ा सबक है। इसे वह लंबे समय तक नहीं भूलेगा।
3 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व को चकित कर दिया। वह अचानक लद्दाख के निमू पहुंचे। समुद्रतल से 11000 फुट की ऊंचाई पर घायल सैनिकों से मिले। उनका हौसला बढ़ाया। मनोबल ऊंचा किया। यह अद्भुत था। वहां स्मारक पर जाकर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा में दो माताओं को याद किया। एक भारत माता और दूसरा उन जवानों की माताएं, जो देश की सुरक्षा के लिए डटे हुए हैं। उन्होंने वहां साफ कहा कि गलवान हमारा है। लद्दाख हमारा गौरव है। हमारे सैनिकों ने दुश्मन को बहुत बड़ा सबक सिखाया है। दुनिया को अपनी ताकत का परिचय दिया हैं। यह स्पष्ट किया कि शांति की बात भी तभी मायने रखती है, जब आपके पास शक्ति हो।
चीन और इसकी कम्युनिस्ट पार्टी विस्तारवादी है। उसने तिब्बत को हड़पा। मंगोलिया, अक्साईचिन, शिनजियांग में उसने जो किया और उसके बाद वह पूर्वी लद्दाख में जिस तरह आगे बढऩे की कोशिश कर रहा है, साऊथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में वियतनाम, ब्रुनेई, ताइवान, फिलीपींस वह सभी जगहों से आगे सरकने की जुगत में है। इसलिए प्रधानमंत्री ने उसकी विस्तारवाद की नीति पर सटीक निशाना साधा। इसके बाद उसकी प्रतिक्रिया आई कि वह विस्तारवादी नहीं और दोनों देशों को आम सहमति से चलना चाहिए। मगर उसकी यह बात उसके व्यवहार से मेल नहीं खाती। 6 जून, 2020 को जब भारत-चीन में कमांडर स्तर की वार्ता में आम सहमति बनाने की कोशिश की गई तो उसने 15 जून को इसे भंग क्यों किया। उसने यह धोखेबाजी क्यों की।
चीन की बहुत-सी कमजोरियां हैं। उनमें चीन की सेना भी एक है। करीब 70 फीसदी सैनिक इकलौता बच्चा होने की वजह से बहुत ही लाड़-प्यार से पले हैं। कठिन परिस्थितियों में लंबे संघर्ष की क्षमता उनमें नहीं है। चीन की कमजोरियां इतनी ज्यादा हैं कि उनकी आॢथक मजबूती और सारी प्रगति तथा कम्युनिस्ट पार्टी के जुल्म उसे लंबे समय तक संभाल नहीं सकते। घरेलू मोर्चे पर भी वह कई परेशानियों का सामना कर रहा है। उसकी वन चाइना नीति का ताइवान ने पर्दाफाश कर दिया है। हांगकांग, तिब्बत, मंचूरिया, शिनजियांग, मंगोलिया सभी जगह उसकी दिक्कतें लगातार बढ़ रही हैं। अपनी विस्तारवादी नीति और गलतियों की वजह से दुनिया के ज्यादातर देशों को चीन ने अपना दुश्मन बना लिया है। उसके 14 पड़ोसी देश तो उससे नाराज हैं ही, बल्कि अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों से भी वह दुश्मनी मोल ले रहा है। अब कोविड-19 पर विफलता ने चीन को पूरी दुनिया के सामने एक खलनायक की तरह खड़ा कर दिया है। दुनिया के 130 देश कोविड-19 के प्रसार की निष्पक्ष जांच की मांग का समर्थन कर रहे हैं। हांगकांग में चीन के अत्याचार के खिलाफ 27 देश एक सुर में खड़े हैं। गलवान में जो किया है, उससे चीन ने अपनी सारी विश्वसनीयता गंवा ली है।
अगर चीन के दोस्तों की बात करें तो सिर्फ ढाई देश हैं। इनमें एक उत्तर कोरिया है, जो अपने तानाशाह की वजह से खुद दुनिया में कोई बहुत अच्छी छवि नहीं रखता। दूसरा पाकिस्तान है, जो पूरी तरह लुट चुका देश है। वह अपनी जरूरतों के लिए चीन के एहसान तले दबा है। आधा हम नेपाल को मान सकते हैं, जो भारत से अपने सभी पुराने संबंधों को भूल कर धीरे-धीरे चीन की तरफ बढ़ रहा है। उसका सारा वजूद जिस प्रोपेगंडावार, मीडिया वार, इन्फॉर्मेशन वार पर टिका है, उसका सच अब दुनिया के सामने आ रहा है। चीन के पाप का घड़ा भर चुका है। अब दो ही सवाल हैं कि क्या चीन सुधर जाएगा या इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए बिखर जाएगा। चीन की नीति और नीयत के बारे में अब सब जान चुके हैं। चीन जिस अहंकार में घूम रहा था, वह टूट चुका है।
जवानों की शहादत के बाद पूरे भारत में चीन के खिलाफ आक्रोश है। जब भी कोई लड़ाई होती है तो उसे सिर्फ फौज नहीं लड़ती। देश की जनता, बाजार, हर सिस्टम मिलकर उस लड़ाई को लड़ता है। सब मिलकर खड़े होते हैं। हर देश की दो रीढ़ शक्तियां हैं। इनमें एक समाज और जनता से बनती है तथा दूसरी सरकार और सेना मिलकर बनाते हैं। भारतीय जनता ने चीन को सबक सिखाने की ठान ली है। चीनी वस्तुओं का बहिष्कार किया जा रहा है। अब हमें मैन्युफैक्चरिंग, मेड इन इंडिया और अन्य विकल्प भी ढूंढने होंगे।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत की तरह ही चीन भी एक पुरानी सभ्यता है। जो बिना टूटे अब तक चली आ रही है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और पी.एल.ए. ने वहां के पूरे सिस्टम को बर्बाद कर दिया है। वहां के लोगों को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित कर रखा है। ऐसा नहीं है कि वहां लोग लोकतंत्र नहीं चाहते। इसके लिए लगातार आवाजें उठती रहती हैं, मगर ऐसी आवाज उठाने वालों का दमन किया जाता है। आज चीन में लोकतंत्र की बहाली की सख्त जरूरत है। नहीं तो यह देश पूरी दुनिया के लिए एक खतरा बनता जाएगा। कोविड-19 में उसने जिस तरह की लापरवाही की और एक बीमारी को पूरी दुनिया में फैल जाने दिया, उसकी जवाबदेही तय करने का यह सही वक्त है। पूरी दुनिया चीन के खिलाफ एकजुट हो रही है। अब चीन को तय करना है कि उसे सुधरना है या फिर दुनिया मजबूरी में कोई सख्त कदम उठाए। मगर अनुभव कहता है कि चीन को अपनी गलतियों से सबक सीखना नहीं आता। वैसे भी जरूरत से ज्यादा आक्रामकता समझदारी छीन लेती है।
- गुरमीत सिंह (रिटायर्ड लैफ्टिनैंट जनरल) (लेखक पूर्व उप-सेना प्रमुख और सैन्य से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ हैं)