दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह की उग्र भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। चुनावों के दौरान आरोप-प्रत्यारोप या थोड़ी-बहुत छींटाकशी आम बात है लेकिन इनमें भी शालीनता का दायरा दूर-दराज के इलाकों में ही पार होता है।
देश की राजधानी में प्रतिष्ठित मंचों से कड़वी भाषा का प्रयोग बताता है कि सियासी स्तर पर कटुता बहुत ज्यादा बढ़ गई है। ऐसी बातें बड़े पदों पर बैठे लोगों के मुंह से सुनी जा रही हैं। अपने देश के ही एक तबके को वे इस तरह निशाना बना रहे हैं जैसे वह देश का दुश्मन हो।