कार्ल मार्क्स और बाबासाहेब समकालीन सिद्धान्त नहीं थे। इसलिए आंकलन करना व्यर्थ है। आंशिक आंकलन हि किया जा सकता है।
विश्व के दो महान विभुती कार्ल मार्क्स और बाबासाहेब आंबेडकर,अहिंसा और मानवता के दुत जिसे विश्व का कोई भी व्यक्ती झुटला नहीं सकता। कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई सन् 1818 को एक यहुदी परिवार में हुआ। परंतु परिवारवालों ने मात्र मार्क्स के 6 / 7 वर्ष के आयु में ही ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था।
डाँ. बाबासाहेब के जन्म के 8 वर्ष पहले 14 मार्च सन् 1883 मे सर्वहारा समाज के महान योद्धा राजनैतिज्ञ, दार्शनिक, आर्थिक, सामाजिक विचार का अन्त हुआ। मानों एक युगकि समाप्ति हुई हो। उनकी महान रचना "दास केपिटल" ने तो मानों पुंजिवाद सामंती रुढीबादीयों कि रीढ हि तोड दी हो। ऐसा महान आर्थिक समानता के लिए कोई लेख इससे पहले कभी नहीं आया था। उनकि इस महान रचना का प्रकाशन सन् 1867 उनके जीवननकाल में हुआ था।
काम्रेड मार्क्स के मृत्यु पश्चात् उनके सहयोगी फ्रेडरिक एंग्लेस नें क्रमशः सन् 1885 सन् 1894 में इस महाकाव्य का तीन चरणों में प्रकाशन किया था। वर्ग संघर्ष का सिद्धांत कार्ल मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद का मेरुदंड है। उनके द्वारा कहा गया महान कथन "तुम्हारे पास खोने के लिए गुलामी कि बेडीयों के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचा है" मशहुर व समाज के यथास्थिति से रुबरु कराता है।
कार्ल मार्क्सका स्मारक बर्लिन - मित्ते में स्थापित है। पुर्वी जर्मनी में बर्लिन कि दिवार के पतन तक कार्ल मार्क्स का चित्र वहाँ के उच्चतममुल के नोटों (सरकारी मुद्रा) पर था। विश्व के दुसरे महान व्यक्तित्व विश्वरत्न आधुनिक बुद्ध डाँ. बाबासाहेब भिमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन् 1891 में मध्यप्रदेश के महुवा में महाराष्ट्र के महार जाती में हुआ था। बाबा साहेब का जन्म महान कार्ल मार्क्स के मृत्यु के लगभग आठ वर्षों बाद हुआ था। वे एक महान सामाजिक योद्धा, राजनैतिक, आर्थिक, दार्शनिक थे।
बाबासाहेब बचपन से ही सरल स्वभावके महत्वाकांक्षी बालक थे। उन्होंने समाज मे फैले छुवाछूत के कोड को बडी बारीकी से देखा था। उन्हें महार ( निच जाती ) का होने पर पाठशाला के अन्दर बैठने कि अनुमती नहीं थी। वे पाठशाला के दरवाजे या खिडकी किवाड से अपना अध्ययन करते थे। उन्हें पीने के पानी के लिए पाठशाला के ब्राह्मण कर्मचारी का इन्तजार करना पडता था।
छुवाछूत अपने चरम सीमा पर था। यह सब देखकर बस् उन्होंने अपना इरादा इस समाज में फैले विसंगती, विकृती से लडने व जड से उखाड फेकनें का मन बना लिया। उन्होंने विश्व कि उच्चशिक्षा प्राप्त कि सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनें। उन्होंने सन् 1935 /1936 मलाहौर में जातपांत विनाश के लिये संभाषण दिया। जिसे उन्होंने स्वयम् "Annihilation of caste" नामक पुस्तक प्रकाशन किया। जो बाद में दलित मुक्ती आंदोलन के आग में घी का काम कर गई । बाबासाहेब कहते थे "मैं हिन्दु धर्म में पैदा जरुर हुआ हु। पर हिन्दु रहेकर ही नहीं मरुंगा"। इसलिए बाबासाहेब ने बीस साल के लम्बे संघर्ष के बाद भारतिय संस्कृति बौद्ध धर्मको स्वीकार किया ।
अंग्रेज सरकार के समय आर्थिक मंदी , रुपये के चलन , वार्षिक आय - व्यय (The problem of rupee) के आधारभुत पर ही सन् 1 अप्रैल 1935 को कलकत्तामें रिजर्व बँक ओफ ईन्डिया कि स्थापना हुई। उनके द्वारा सवर्णों के कुओं, नदियों में दलित समाज द्वारा समान हक्क के लिए आंदोलन हुआ। सन् 1932 सितंबर 24 में महिलाओं को समान हक्क , दलितों पिछडों को समान हक्क के लिए पुना एक्ट (सम्झौता) कि तो बात ही निराली है। वहाँ साजिस होने पर उन्होंने भारत के पहले कानून मंत्री से अपना इस्तीफा तक दे दिया। सन् 1938 में भारतवर्ष से 16 लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्ती के लिए तत्कालीन अंग्रेज सरकार के वायसराय से छात्रवृत्ति मंजुर कराके विदेश भेजे ताकी वन्चित समाज को शिक्षा उनके घर घर दरवाजे तक पहुंचा सके। परंतु वे सभी उच्चस्तर कि शिक्षा प्राप्त कर वापस स्वदेश आकर सब बाबासाहेब के त्याग को भूल गये, इसलिए बाबासाहेब ने कहा था " मुझे मेरे पढे-लिखे लोगों ने धोका दिया"।
बाबासाहेब शहरी दलितों से अधिक ग्रामीण दलितों कि चिन्ता करते थे। बाबासाहेब प्रायः कहते थे "मैंने यह आंदोलन बडी संघर्ष और तकलीफ से यहाँ तक पहुँचाया है। इसे आगे बढाये। न बढा सके तो इसे यहाँ से पिछे न जाने दें"। वंचित समाज , महिलाओं के अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ, आर्थिक समानता के लिए जीवनभर संघर्ष करते करते सन् 1956 डिसेम्बर 6 को अपना शरीर त्याग (महापरिनिर्वाण) दिया। उनके द्वारा दिया गया मुलमंत्र "शिक्षा प्राप्त करो! संगठित बनो! संघर्ष करो!" आज पुरे विश्व में प्रख्यात है।
कार्ल मार्क्स और बाबासाहेब समकालीन सिद्धान्त नहीं थे। इसलिए आंकलन करना व्यर्थ है। आंशिक आंकलन हि किया जा सकता है। हाँ, इन दोनों महान विभुतियों कि जीवनशैली लगभग मिलति - जुलती है। न कोई छोटा न कोई बडा । "हम ही हम हैं तो क्या हम हैं। तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो।"
-लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।