दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मरने वाले लोगों के शवों को निपटाने संबंधी दिल्ली की आप सरकार के हालिया आदेशों के कार्यान्वयन की वह निगरानी करेगा ।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी एन पटेल एवं न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने कहा कि अदालत यह देखना चाहती है कि कोविड—19 से मरने वाले लोगों के शवों को निपटाये जाने संबंधी दिल्ली सरकार के 30 मई के निर्देश ने जमीनी स्तर पर कैसे काम किया है । स्वास्थ्य विभाग की ओर से अदालत में पेश होने वाले दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता संजय घोष ने कहा कि अदालत विशेष रूप से यह देखना चाहती है कि 30 मई के आदेश के अनुरूप कोविड—19 से 31 मई और 1 जून को मरने वालों के शवों के निपटारे का काम किया गया है अथवा नहीं। घोष ने यह भी बताया कि अदालत ने दिल्ली सरकार से मामले की 15 जून को होने वाली अगली सुनवाई से दो दिन पहले, मामले में अद्यतन स्थिति रिपोर्ट जमा कराने के लिये कहा है ।
स्वास्थ्य विभाग के 30 मई के आदेश में कोविड—19 से संक्रमित अथवा संदिग्ध मरीजों की मौत के बाद एक निश्चित समय सीमा के भीतर शवों के निपटारे के लिये उस अस्पताल के चिकित्सा निदेशक अथवा अस्पताल के निदेशक की जिम्मेदारी तय की गई है, जहां मरीज की मौत हुयी अथवा मृत लाया घोषित किया गया।
आदेश में यह भी कहा गया है कि संबंधित नगर निगम उन शवों के अंतिम संस्कार अथवा उनके दफनाये का जाने का सारा प्रबंध करेगा । मीडिया में आयी खबरों के अधार पर अदालत स्वत: संज्ञान लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इन खबरों में कहा गया था कि कोविड—19 से मरने वालों के शवों की अंत्येष्टि के लिये सुविधाओं का अभाव है और मुर्दाघरों में शव सड़ रहे हैं । अदालत ने इस मामले में तल्ख होते हुये कहा था कि अगर यह स्थिति सही है तो तो यह निहायत ही असंतोषजनक है एवं मृतक के अधिकारों का उल्लंघन है ।